– मृत्युंजय दीक्षित
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश भगवा राजनीति का अजेय दुर्ग बन चुका है । 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ पहली बार 73 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। अब गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में जितने भी चुनाव हो रहे हैं, हर में भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ रहा है। 2017 के नगर निगम चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव, 2022 के विधानसभा चुनाव और अब 2023 के नगर निकाय चुनाव ने तो नया अध्याय लिख दिया है। निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने सभी 17 नगर निगम और उसके बाद नगर पंचायत और पालिका चुनाव में सीट व वोट प्रतिशत के हिसाब से अब तक की सबसे बड़ी जीत अर्जित कर बड़ी लकीर खींच दी है।
इसी समय हुए उपचुनाव में भाजपा ने सपा के मजबूत नेता आजम खां के अंतिम गढ़ को भी ध्वस्त कर दिया है। भाजपा की इस विजय से विपक्षी दलों के उत्साह पर पानी फिर गया है और वह 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी में पिछड़ गए हैं। भाजपा अपने सभी सहयोगी दलों के साथ सभी 80 सीटों पर विजय का शंखनाद करती हुई आगे बढ़ रही है। अब भाजपा को प्रदेश के नगर निगमों में संचालन के लिए निर्दलीयों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। इस विजय के नायक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। उनकी नियत, नीति और कार्यशैली जनमानस को भा रही है। योगी आदित्यनाथ ने 13 दिन में 43 जिलों में 50 जनसभा और रोड शो कर अपार मेहनत की। उसका सुफल जनता भाजपा को दिया। उन्होंने प्रचार में विकास तथा कानून व्यवस्था का ही मुद्दा उठाया ।
विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री का बयान, “मिटटी में मिला देंगे माफिया को” और उसके बाद कई खतरनाक माफिया पर हुई कार्रवाई ने आमजन का भरोसा बढ़ा दिया। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे दलों को मुंह की खानी पड़ी। प्रदेश की जनता ने पहली बार नगर निकाय चुनाव में कानून व्यवस्था पर जमकर वोट दिया। कई मोहल्लों व गलियों में तो भाजपा को एकतरफा वोट मिला है। भाजपा कार्यकर्ता निगम चुनाव में मतदाता को यह समझाने में कामयाब हो गए कि कौन उनका सच्चा हमदर्द है। लखनऊ कमल तो खिला ही है पर अबकी बार पिछली बार से भी अधिक वोट प्राप्त हुए हैं और पार्षद जीतने में कामयाब रहे हैं।
मुख्यमंत्री का मानना है कि निकाय चुनाव में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत सुशासन, विकास और भयमुक्त वातावरण का नतीजा है। यह सच भी है। भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में धर्म की ध्वजा पर सवार होकर जातियों का चक्रव्यूह भेदने में सफलता हासिल की है। पार्टी के मतदाता सम्मेलनों का भी फायदा मिला है। कुछ सीटों पर बगावत भी हुई, पर वह असर नहीं दिखा सकी।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मंत्रिमंडल सहयोगियों की दिन-रात की गई मेहनत ने विपक्ष के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। 2023 में भाजपा ने 2017 के मुकाबले बहुत बढ़त बनाई है। वर्ष 2017 में भाजपा ने 14 नगर निगमों में जीत हासिल की थी।198 नगर पालिका परिषद में 70 पालिकाओं में अध्यक्ष पद का चुनाव जीता था। इस बार भाजपा ने 199 में से 87 नगर पालिकाओं में अध्यक्ष पद का चुनाव जीता है। वर्ष 2017 में भाजपा ने 438 नगर पंचायतों में से 100 पर चुनाव जीता था और इस बार भाजपा ने 544 नगर पंचायतों में से 191 पंचायतों में अध्यक्ष पद का चुनाव जीता है। राजधानी लखनऊ के निगम इतिहास में पहली बार भाजपा के 80 पार्षद कमल खिलाने में कामयाब रहे हैं।
भाजपा हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की राजनीति के बीच अल्पसंख्यकों को भी राष्ट्रधारा में लाने का प्रयास कर रही है । पसमांदा समाज और गरीब मुस्लिम मतदाता की झिझक टूट रही है। प्रदेश की राजनीति में नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने पहली बार 395 मुस्लिमों को टिकट दिया, उनमें से 54 ने जीत का परचम लहराया है। भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बासित अली कहते हैं कि यह तो महज एक शुरुआत है। दो पार्षद नगर निगम में भी विजयी हुए। पांच ने नगर पंचायत अध्यक्ष और 35 ने नगर पंचायत सदस्य के पदों पर विजय प्राप्त की है। लखनऊ के हुसैनाबाद से लुबना अली खान और गोरखपुर से अकीकुल निशां पार्षद बने हैं। इस बार निकाय चुनाव पर ओबीसी आरक्षण पर विवादों की छाया भी रही पर प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को निराश नहीं किया। इस प्रचंड विजय के बाद भारतीय जनता पार्टी के समक्ष बड़ी चुनौती जनमानस की उम्मीदों पर खरा उतरने की है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)