– प्रभुनाथ शुक्ल
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के मध्य जमी बर्फ फिलहाल पिघलती नहीं दिखती है। गोवा में सम्पन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक से कम से यही संदेश निकलता है। पाकिस्तान आतंकवाद के मसले पर दोहरी नीति का पोषक है। पाकिस्तान यह अच्छी तरह जानता है कि भारत से सीधी लड़ाई में वह कभी जीत नहीं हासिल कर सकता है। वैश्विक मंच पर भी भारत बेहद मजबूती से खड़ा दिखता है।
दुनिया में भारत की साख मजबूत है। भारत की वैश्विक कूटनीति अलग है। वह अपनी बात को दुनिया के सामने बड़ी साफगोई से रखता है। आतंकवाद के मसले पर उसकी नीति दो टूक है। भारत कभी भी आतंकवाद का समर्थन नहीं करता। अमेरिका, रूस और चीन जैसे ताकतवर मुल्कों के साथ भी उसकी नीति साफ है। भारत बुद्ध के सिद्धांत पर चलता है। वह जीओ और जीने दो में विश्वास रखता है। अरब देशों से भी भारत के बेहतर सम्बन्ध हैं। क्योंकि उसकी नीति स्पष्ट और साफ है।
शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर कुछ खास हासिल नहीं हो पाया। भारत ने आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा कर दिया। विदेशमंत्री एस जयशंकर ने जिस तरह पाकिस्तान को लताड़ा वह काबिलेगौर है। भारत शंघाई सहयोग संगठन के देशों को यह समझाने में कामयाब रहा कि आतंकवाद की फसल पाकिस्तान में उगाई जाती है।
आतंकवाद को लेकर इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या हो सकती कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भारत में थे और कश्मीर में पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर आए आतंकी हमारी सेना पर हमला कर रहे थे। राजौरी विस्फोट में हमारे पांच सैनिकों ने राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की इससे बड़ी दोहरी नीति और क्या हो सकती है। ईद के दिन भी सेना के ट्रक पर ग्रेनेड से हमला किया गया जिसमें पांच जवान बलिदान हो गए।
पाकिस्तान के विदेशमंत्री ने पाकिस्तान लौटने के बाद कहा है कि आतंकवाद के मसले पर दोनों मुल्कों को मिलकर बात करनी चाहिए। यह दुनिया को दिखाने के लिए पाकिस्तान की छद्म कूटनीति है। 2016 के बाद बिलावल भुट्टो पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने भारत का दौरा किया है। हालांकि बिलावल के भारत दौरे को लेकर भी लोग बंटे हैं। पाकिस्तान चाहता है कि भारत धारा 370 की कश्मीर में वापसी करे, लेकिन यह संभव नहीं है। क्योंकि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। वह किसी दूसरे का हस्तक्षेप मंजूर नहीं करेगा।
दूसरी तरफ पाक परस्त आतंकी घटनाएं चरम पर हैं उस लिहाज से पाकिस्तान से बातचीत मुमकिन नहीं है। सम्बन्ध सुधारने की बात तो दूर की कौड़ी है। पाकिस्तान चाहकर भी भारत के साथ रिश्ते नहीं सुधार सकता है। क्योंकि पाकिस्तान में चुनी सरकारें स्वतंत्र नहीं होती हैं उस पर सेना का नियंत्रण रहता है। पाकिस्तान में सरकारें सिर्फ दिखावे की बनती हैं, नीति तो सेना तैयार करती है। सेना खुद नहीं चाहती कि भारत के साथ सम्बन्ध सुधरें। पाकिस्तान की आर्मी आतंकियों को खुद ट्रेनिंग देकर भारत भेजती है। पाकिस्तान आतंकवाद पर दुनिया को दिखाने के लिए सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाता है।
भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में अब चुनाव कराना चाहती है। जबकि पाकिस्तान कभी ऐसा नहीं चाहेगा। यहाँ आम कश्मीरी अमन चाहता है। क्योंकि वह बहुत कुछ खो चुका है, लेकिन पाकिस्तान परस्त वहां के राजनेता कश्मीर में कभी भी शांति नहीं चाहते। कश्मीर शांत हो गया तो उनकी वहां कोई सुनने वाला नहीं रहेगा। धारा 370 की आड़ में राजनेताओं ने खूब लूटा है। भारत के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान से साफ कर दिया कि आप खुद को आतंक का शिकार कहते हैं और आतंक फैलाने वालों के साथ बैठते हैं, ऐसा नहीं हो सकता।
भारत पड़ोसियों से हमेशा शांति चाहता है। अगर ऐसा न होता तो शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान को आमंत्रित ही न करता। लेकिन भारत की कूटनीति बहुत मजबूत है। विदेशी मेहमानों के सामने पाकिस्तान की आतंक परस्त नीति की भारतीय विदेशमंत्री ने बखिया उधेड़ दी। फिलहाल पाकिस्तान के संदर्भ में विदेश मंत्री एस जयशंकर की तरफ से की गयी यह टिप्पणी अहम है कि बिलावल और पाकिस्तान आतंक की इंडस्ट्री के प्रवक्ता हैं, आतंक को बढ़ावा देने और सही ठहराने वाले हैं। फिलहाल पाकिस्तान से आतंक के मसले पर कोई भी उम्मीद बेमानी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)