इस दौरान कोर्ट में पार्थ को जेल में ले जाते समय का रजिस्टर भी पेश किया गया था। न्यायाधीश ने खुद ही उस रजिस्टर को देखा। उसके बाद न्यायाधीश ने एक बार फिर जेल सुपरिंटेंडेंट से पूछा कि क्या आप खुद ही जेल का कानून बनाएंगे और उसका पालन करेंगे? नियम है कि जेल में कोई आभूषण नहीं पहन सकता तो फिर पार्थ कैसे पहने हुए थे? इस पर जेल अधीक्षक चुप थे।
इसके पहले पार्थ को जब कोर्ट में पेश किया गया था तब ईडी ने कहा था कि वह इतने प्रभावशाली है कि जेल अधीक्षक की उनकी अंगूठी खोलने तक की हिम्मत नहीं हुई। इस पर पार्थ ने कहा था कि स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने अंगूठी नहीं खोली है। पार्थ ने यह भी कहा था कि किसी ने उन्हें अंगूठी पहनने से मना नहीं किया है। ऐसे में बुधवार को जेल सुपरिंटेंडेंट के बयान भी अपने आप में झूठे होने के दावे किए जा रहे हैं।
ईडी के अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि देवाशीष ऐसे जेल सुपरिंटेंडेंट हैं जिनके खिलाफ कई सारी शिकायतें हैं। हाईकोर्ट का आदेश तक नहीं मानते हैं। इन पर दो हजार रुपये का जुर्माना भी लगा है। इन पर सत्ता के शीर्ष की छाया है जिसकी वजह से कहीं और इनका ट्रांसफर नहीं हो सकता। (हि.स.)