– आर.के.सिन्हा
आगामी सितंबर में राष्ट्रीय राजधानी में जी-20 शिखर सम्मेलन के फौरन बाद से ही देश में 2024 के लोकसभा चुनाव की हलचल तेज होने लगेगी। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर के द्वार दुनिया भर के राम भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे। इससे दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि स्थानों पर पर्यटन भी तेजी से बढ़ेगा। इसलिए यह सवाल तो पूछा ही जाएगा कि क्या अगले आम चुनाव में राम मंदिर चुनावी मुद्दा बनेगा? जिस तरह से भाजपा राम मंदिर को लेकर जनता के बीच जा रही है उससे तो यह स्पष्ट ही है कि पार्टी इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करेगी और करे भी क्यों नहीं जो काम 500 वर्षों के समय-समय पर हुए भयंकर रक्तपातों और लाखों राम भक्तों की कुर्बानी से भी हासिल न हो सका, वह भाजपा के शासन में आसानी से हो भी गया और किसी को चूं चपड़ तक करने की हिम्मत तक न हुई । 1980 में अस्तित्व में आने के बाद से ही राम मंदिर भाजपा की राजनीति का एक मुख्य आधार रहा है।
अगर भाजपा इस चुनाव में सत्ता बरकरार रखने में सफल रहती है, तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेन्द्र मोदी ही ऐसे पहले राजनेता होंगे जिनकी अगुवाई में कोई पार्टी लगातार तीन बार सत्ता हासिल करने में कामयाब होगी। वहीं कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के लिए 2024 का चुनाव एक तरह से अस्तित्व की अंतिम लड़ाई सरीखा है। इसीलिए शायद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद नजर रख रहे हैं कि राम मंदिर का निर्माण समय पर पूरा हो जाए।
बेशक,आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच राम मंदिर का मुद्दा लोकसभा चुनाव 2024 के केंद्र में रहने वाला है। याद करें कि भाजपा ने एक दौर में राम और रोटी का नारा दिया था। आज यह नारा आगे बढ़कर सबका साथ, सबका विकास तक पहुंच गया है। पार्टी विद डिफरेंस के साथ आगे बढ़ी भाजपा आज न सिर्फ भारतीय राजनीति के केंद्र में है, बल्कि बीते एक दशक में उसने भारतीय राजनीति के सूर्य को दक्षिणायन कर दिया है। डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे प्रखर समाजवादी चिंतक तक ने राम के आदर्श और लोक स्वीकार को महत्व दिया था। वे कहते थे, भारत के तो कण-कण में राम बसे हैं। भारत की राम के बिना तो कल्पना करना भी असंभव है। सारा भारत राम को अपना अराध्य और पूजनीय मानता है।
लोहिया यह भी कहते थे कि भारत के तीन सबसे बड़े पौराणिक नाम – राम, कृष्ण और शिव ही हैं। उनके काम के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी प्राय: सभी को, कम से कम दो में एक भारतीय को तो होगी ही। उनके विचार व कर्म, या उन्होंने कौन-से शब्द कब कहे, उसे विस्तारपूर्वक दस में एक तो जानता ही होगा। कभी सोचिए कि एक दिन में भारत में कितनी बार यहां की जनता प्रभु राम का नाम लेती है। ये आंकड़ा तो अरबों-खरबों में पहुंच जाएगा। भारत राम का नाम तो लेता ही रहेगा।
राम का नाम भारत असंख्य वर्षों से ले रहा है और लेता ही रहेगा। मोहम्मद इकबाल ने श्रीराम की शान में 1908 में एक मशहूर कविता लिखी थी। वे भगवान राम को राम-ए-हिंद कहते हैं। वे इस कविता में यह भी लिखते हैं-है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज, अहले नजर समझते हैं उनको इमामे हिन्दI यानी भारत को गर्व है कि श्रीराम ने भारत में जन्म लिया और सभी ज्ञानी लोग उन्हें भारत का इमाम अथवा आध्यात्मिक गुरु मानते हैं। गांधी भारत में राम राज्य की स्थापना देखना चाहते थे। वे हिन्दू धर्म के भगवान नहीं हैं। बल्कि, वे भारत की मिट्टी की सांस्कृतिक धरोहर हैं और इस साझी धरोहर को बांटना न मुमकिन है न ही समझदारी।
खैर, राम मंदिर निर्माण के साथ ही भारत में अगले वर्ष से नए युग का सूत्रपात होगा जिसका असर भारतीय राजनीति पर पड़ेगा ही। इसकी आहट विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भी महसूस की गई। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भाजपा के लिए अपने इतिहास का सबसे गौरवशाली क्षण होगा। याद करिए 1980 का वह दशक। जब देश में कम समय के लिए बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार की यादों के साथ दशक का आगाज हुआ। इस दशक से देश की राजनीति के इतिहास में यह मुद्दा बड़े महत्व का रहा। 1984 चुनाव में भाजपा को बहुत कम सफलता मिली, लेकिन राम मंदिर निर्माण को लेकर अपनी संकल्पना के प्रति पार्टी वचनबद्ध रही।
साल 1989 के पालमपुर सम्मेलन में पार्टी ने तय किया कि उसका मुख्य राजनीतिक एजेंडा ‘राम जन्मभूमि को मुक्त करवाकर भव्य मंदिर बनवाना’ होगा। वरीय नेता और पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अगले ही साल रथयात्रा शुरू की। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह कालजयी घटना थी। 9 नवंबर, 1989 को शिलान्यास समारोह आयोजित किया गया। इसके कुछ दिनों बाद जब लोकसभा चुनाव हुए, तो भगवा पार्टी की संख्या 85 हो गई, और इसने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर कारसेवकों पर फायरिंग की गई। इस घटना से पूरा देश मर्माहत हो गया। प्रत्येक राष्ट्र भक्त देशवासी को गहरा धक्का लगा। 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने से भाजपा ने राम मंदिर मुद्दे को और जोर-शोर से उठाया। 1996 और 1999 के चुनाव में भाजपा को खासी कामयाबी मिलती दिखी और देश में 1999 में पहली बार पूर्ण कार्यकाल वाली भाजपा सरकार बनी। अबतक मंदिर के लिए कानूनी लड़ाई भी सही ढंग से लड़ी जाने लगी थी। यह निश्चित तौर पर मानिए राम मंदिर का निर्माण पूरा होने को भाजपा चुनावी मुद्दा बनाएगी। इसका असर सारे भारत पर होगा। इस बारे में कोई बहस नहीं हो सकती। भाजपा अनुच्छेद 370 जैसे सारे काले कानूनों को हटाने का भी क्रेडिट लेना चाहेगी।
इस बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के आला अफसरों को उम्मीद है कि मंदिर खुलने पर तीर्थयात्रियों की संख्या प्रतिदिन लगभग एक लाख भक्तों तक बढ़ जाएगी। गृहमंत्री अमित शाह ने त्रिपुरा दौरे पर अपने संबोधन में 1 जनवरी 2024 को अयोध्या में गगनचुंबी राममंदिर तैयार हो जाने की बात कही है। इस बीच, भाजपा अगले लोकसभा चुनाव के समय असदुद्दीन ओवैसी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को देश के सामने बेनकाब करेगी। पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था की राम मंदिर को उसी प्रकार से बदल देंगे जैसे तुर्किये की हगिया सोफिया मस्जिद के साथ हुआ। यह धमकाने वाला लहजा कभी भी हिन्दू बहुल देश स्वीकार नहीं करेगा ।
क्या इन्होंने तब कभी आपत्ति जताई थी जब देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दशकों से इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते थे? ओवैसी और दूसरे तमाम कथित सेक्युलरवादी अल्पसंख्यकों के हितों की तो खूब बातें करते हैं। उन्हें उनके अधिकार बिल्कुल ही मिलने भी चाहिए। पर ये सब कश्मीर में हिन्दू पंडितों के अधिकार देने के मसले पर चुप क्यों हो गए थे। पाकिस्तान अल्पसंख्यक हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों पर जो अत्याचार कर रहा है उसपर अबतक चुप्पी क्यों साध रखी है I खैर, यह मान कर चलिए कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राम मंदिर फिर से भाजपा की चुनावी कैंपेन के केन्द्र में होगा और 2024 में नरेन्द्र मोदी की सरकार तीसरी बार बनवाने में सफल होता दिख रहा है ।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)