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इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार

– हृदयनारायण दीक्षित

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं की पुस्तकों में कतिपय संशोधन किए गए हैं। इन पुस्तकों में बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक पाठ्यक्रम बनाए जाते हैं। विषय विशेषज्ञों की समिति विचार करती है। अन्य विषय की पुस्तकों में भी संशोधन हुए हैं। लेकिन इतिहास की पुस्तकों में हुए कतिपय संशोधनों को लेकर बहस चल रही है। अध्ययन की दृष्टि से इतिहास, संस्कृति और दर्शन महत्वपूर्ण विषय माने जाते हैं। इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार है। भारत में इतिहास संकलन की विशेष परंपरा रही है। यूरोपीय तर्ज के इतिहास में राजाओं और सामंतों के संघर्षों का वर्णन ज्यादा होता है। भारतीय इतिहास में संस्कृति का विवरण महत्वपूर्ण होता है।

इतिहास सर्वोच्च मार्गदर्शी होता है। सृष्टि के उदय से लेकर अब तक का विवरण इतिहास है। इतिहास का अर्थ है-ऐसा ही हुआ था। भारतीय जीवन दृष्टि में इतिहास कभी बूढ़ा नहीं होता। यह अजर अमर आख्यान है। इतिहास के वृक्ष पर नित नया वसंत खिलता रहता है। सूर्य उगते हैं। प्रतिपल नया सूर्योदय होता है। इसके पहले ऊषा आती है। बार-बार आती है। मधु मास आते हैं। नए फूल फल उगते हैं। ऋतुएं नया रंग रूप लेती हैं। मनुष्य और प्रकृति की प्रीति चलती रहती है। संघर्ष भी चलते हैं। मनुष्य मनुष्य से परस्पर लड़ते हैं। हिंसा होती है। मनुष्यता पश्चाताप में होती है। इतिहास के अंतःकरण में ऐसी सारी घटनाएं संकलित रहती हैं।

भारतीय इतिहास की शुरुआत सृष्टि सृजन की मधुमय मुहूर्त से होती है। ऋग्वेद के एक मंत्र (10.72.2) में कहते हैं, ‘देवताओं के जन्म से पहले असत् से सत् का उद्भव हुआ।” सृष्टि उगती है। इतिहास का गायन शुरू हो जाता है।’ बड़ी बात है कि ऋषि उस कालखंड का वर्णन कर रहे हैं जब देवता भी नहीं थे। ऋग्वेद के ऋषि सृष्टि संरचना से इतिहास का क्रम शुरू करते हैं। यूरोपीय तर्ज के इतिहास लेखक इसे प्रागैतिहासिक काल बता कर छुट्टी पा जाते हैं। पहले समय नहीं था। सृष्टि सृजन के शुरुआत के साथ गति हुई और गति से समय का जन्म हुआ। ऋग्वेद के ऋषि इसके भी पहले का वर्णन करते हैं, ‘तब न सत् था न असत् था। भू, आकाश आदि भी नहीं थे। न दिन था न रात्रि। वायु भी नहीं थी।’ यह भारतीय दृष्टि का इतिहास है। असिमोव ने वल्र्ड क्रोनोलॉजी में बताया है कि अग्नि की खोज मानव जीवन की महत्वपूर्ण घटना है।

ऋग्वैदिक ऋषि अग्नि की खोज का श्रेय भारतीय पूर्वजों को देते हैं। कहते हैं, ‘मनु ने मानवता के हित में अग्नि की स्थापना की। (1.36.19) मनु के बारे में कहते हैं, ‘वह हम सब के पिता हैं।’ भारत में इतिहास की ज्ञान उपासना प्राचीन है। इस इतिहास में अतीत के तथ्य काव्य रूप में हमारे सामने आते हैं। यह शैली लोकमंगल से जुड़ी प्रकृति की शक्तियों को देवता रूप देती हैं। लेकिन इतिहास के प्रति सजगता बनी रहती है। एक सुन्दर सूक्त (10.14.15) में कहते हैं, ‘इदं नमः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृष्टभ्यः, ऋषिभ्यः – पूर्वजों को नमस्कार है। वरिष्ठों को नमस्कार है। मार्गदर्शक ऋषियों को नमस्कार है।’ पूर्वज पूर्वकाल में हुए थे और पूर्व काल का विवरण इतिहास है।

अथर्ववेद के पन्द्रहवें अध्याय में अथर्वा ने व्रात्य नाम के देवता का विवरण दिया है। वेदों में व्रात्य शब्द का अर्थ उच्चतर आध्यात्मिक चेतना के लिए प्रयुक्त हुआ है। यह विवरण इतिहास दृष्टि का सुन्दर उदाहरण है, ‘व्रात्य ने उच्चतर स्थिति प्राप्त होते ही ब्रह्मा का मार्गदर्शन प्राप्त किया। ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की।’ ऋषि व्रात्य की यात्रा का सुन्दर वर्णन करते हैं। सूक्त 6 में कहते हैं, ‘उसने ऊर्ध्व दिशा की ओर प्रस्थान किया। भूमि, अग्नि औषधियां, वनस्पतियां उसके अनुकूल हो गईं। जो यह तथ्य जानते हैं वह उक्त सभी तत्वों को अपने अनुकूल कर लेते हैं।’ यहां समस्त भौतिक जगत को अपने अनुकूल करने की प्रेरणा है।

कर्तव्य पालन करने वाला व्यक्ति हमेशा गतिशील रहता है। प्रारम्भिक चरण में वह भौतिक जगत को अपने अनुकूल करता है। फिर कहते हैं, ‘व्रात्य ने ऊर्ध्व दिशा की ओर प्रस्थान किया। ऋत, सत्य, सूर्य और नक्षत्र उसके अनुकूल हो गए और पीछे चलने लगे।’ यहां चेतना के ऊर्ध्वगमन की बात कही गई है। फिर कहते हैं कि व्रात्य ने वृहती दिशा की ओर प्रस्थान किया। तब इतिहास, पुराण और नारसंशी गाथाएं उसके साथ चलीं। अथर्ववेद में इतिहास का यह उल्लेख ध्यान देने योग्य है। यहां इतिहास भी परिश्रमी व्यक्ति के साथ चलता हुआ बताया गया है।

हिन्दुओं पर इतिहास की उपेक्षा का आरोप पुराना है। अलबेरुनी का आरोप था कि’हिन्दू चीजों के ऐतिहासिक क्रम पर ध्यान नहीं देते। वे अपने सम्राटों के कालक्रमानुसार उत्तराधिकार के वर्णन में लापरवाह हैं।’ निस्संदेह भारत में युद्धों आदि के विवरण का संकलन कालक्रमानुसार नहीं किया गया। वस्तुतः भारतीय इतिहासवेत्ताओं और पुराणकारों की दृष्टि भविष्य की ओर थी। हिन्दुओं ने इतिहास से प्रेरक और अनुकरणीय पात्रों को महत्व दिया है। वैदिक ऋषियों और पुराणकारों ने प्रेय और श्रेय को मंत्र बनाया। काव्य की तरह गाया। लोकस्मृति आखिरकार है क्या?

वस्तुतः यह इतिहास का ही स्वर्ण कोष है। श्रीराम भी राजा हैं। भारतीय इतिहास में ढेर सारे राजा हुए। लेकिन राजा रामचंद्र भारत की श्रुति में, गीत में, परस्पर बतरस में गांव-गली तक चर्चा पाते हैं। श्रीकृष्ण भी ऐतिहासिक नायक हैं। राम राज्य विश्व का आदर्श राज्य है। इतिहास के लाडले राजा हरिश्चंद्र भी महत्वपूर्ण नायक हैं। देश के प्रत्येक गांव-घर में हरिश्चंद्र नाम के हजारों लोग मिलते हैं। सवा अरब की जनसंख्या में ज्यादातर नाम राम, कृष्ण, हरिश्चंद्र जुड़े हुए हैं। राम प्रसाद, राम नाइक, राम भरोसे, राम बहादुर जैसे नाम इतिहास में हैं। और आधुनिक भारत में भी गांव गली तक चर्चित हैं।

प्राचीन भारत में इतिहास का नाम ‘पुरावृत्त’ था। यह अमरकोश में सुरक्षित है। उत्तर वैदिक काल की छान्दोग्य उपनिषद में नारद ने सनत् कुमार को बताया था कि मैंने इतिहास और पुराण पढ़े हैं। कालिदास ने रघुवंश में लिखा है कि विश्वामित्र ने राम को पुरावृत्त सुनाया था। भवभूति और राजशेखर ने रामायण को इतिहास बताया है। महाभारत भी इतिहास है। इस इतिहास में यक्ष प्रश्न हैं। ऋग्वेद इस इतिहास का प्राचीनतम विवरण है। इस इतिहास में ऋग्वेद है और ऋग्वेद में इतिहास है। सुदास वैदिक इतिहास के राजा हैं। दस राजाओं से सुदास का युद्ध हुआ था। यह बड़ा युद्ध था। (7.83.7) यह हजारों वर्ष प्राचीन इतिहास है। गीता के चौथे अध्याय के पहले व दूसरे श्लोक में इतिहासबोध है, ‘हे अर्जुन यह योग पहले विवस्वान को दिया था। उन्होंने मनु को बताया और मनु ने इक्ष्वाकु को।

इतिहास की इसी परंपरा में राजऋषियों ने इस ज्ञान का प्रवाह बनाए रखा लेकिन दीर्घकाल में यह ज्ञान नष्ट हो गया। कृष्ण ने कहा वही ज्ञान मैं तुमको बता रहा हूं।’ ऋग्वेद से लेकर महाभारत पुराणकाल तक का इतिहास प्राचीन ग्रंथों में सुरक्षित है। इससे भी ज्यादा वह भारत की लोक स्मृति में गांव-गली तक फैला हुआ है। इसके बाद मध्यकाल में मुगल सत्ता व आधुनिक काल में ब्रिटिश सत्ता है। इस इतिहास का विरूपण हुआ है। निष्पक्ष ही इतिहास आधुनिक पीढ़ी को जिज्ञासु विज्ञानी बनाएगा।

(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)