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बुंदेलखंड की आध्यात्मिक नगरी चित्रकूट में मौजूद हैं हजारों साल पुराने दुर्लभ प्रागैतिहासिक शैल चित्र

चित्रकूट। विश्व प्रसिद्ध पौराणिक तीर्थ चित्रकूट के मानिकपुर तहसील का दक्षिणी इलाका प्रागैतिहासिक शैल चित्रों की दृष्टि से बहुत समृद्ध शाली है। मानिकपुर के कल्याण गढ़ से लगभग आठ किमी दूर अमवा ग्राम सभा में धारकुंडी आश्रम के पास जंगल में जुगनी हाई का पथरी दाई स्थल है।इस क्षेत्र में थोड़ी थोड़ी दूर में स्थित पांच शिला खंडों में प्रागैतिहासिक युगीन शैल चित्रों के प्रमाण मिलते हैं।

विंध्य क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक शैल चित्रों की खोज का श्रेय आर्चीवाल्ड और जान ककवर्ण को दिया जाता है। प्रोफेसर डी0 एच0 गार्डन ने प्रीहिस्टोरिक बैकग्राउंड ऑफ इंडियन कल्चर पुस्तक में प्रागैतिहासिक युगीन शैल चित्रों के विषय में विवरण प्रस्तुत किया है। ककवर्न ने अपने शोध का सचित्र वैज्ञानिक विवरण एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के जर्नल में सन 1883 में प्रकाशित किया था। अमवा से मिले प्रागैतिहासिक शैलचित्र आज भी सुरक्षित है।

इतिहासकार डॉ संग्राम सिंह ने प्रत्यक्ष अवलोकन के आधार पर बताया कि यहां के प्रागैतिहासिक शैल चित्र हेमेटाइट प्रकार के हैं जो गेरुआ रंग के हैं। अधिकांश खुले शिलाखंड के नीचे हैं और ऊपर से छतरी नुमा सुरक्षित बड़ी चट्टान है। धूप और पानी से सुरक्षित है। सघन जंगली इलाके में होने के कारण लोग नहीं पहुंच पाते हैं। इन चित्रों में ज्यादातर जंगली पशुओं का अंकन दृष्टिगोचर होता है। एक बड़ी शिला में एक साथ लगभग आधा सैकड़ा जंगली पशुओं तथा मानव चित्रों के साथ उनके क्रियाकलापों का निरुपण दर्शित है। वस्तुता यहां के प्रागैतिहासिक शैल चित्रों का वर्ण विषय तत्कालीन मानवीय गतिविधियों का निरूपण है।

इतिहासकार डॉ संग्राम सिंह बताते है कि प्रागैतिहासिक युगीन मानव ने अपने आवास स्थल गुफाओं को अलंकृत करने के लिए शैल चित्रों का निर्माण किया होगा। इन चित्रों का निर्माण वस्तुतः अलंकरण की पहली घटना मानी जा सकती है। चित्रकूट क्षेत्र से प्राप्त शैलचित्रों में कई चित्र ऐसे भी मिले हैं जो पहले से बनाए गए चित्रों के ऊपर ही बनाए गए, जिसे सुपर इंपोजिशन कहते हैं। सुपर इन पोजीशन प्रकृति के चित्रण की जरूरत क्यों पड़ी। उन्होंने बताया कि प्रागैतिहासिक मानव को बने चित्रों में ऊपर चित्र बनाने में सहूलियत, शैलाश्रयों की स्थान के कमी के कारण पूर्व निर्मित चित्रों के ऊपर दूसरे चित्र बनाया जाना, यहां के शैल चित्रों में लाल रंग का प्रयोग किया गया है। लाल रंग एक प्राकृतिक खनिज है जो निचली घाटियों तथा जंगल में उपलब्ध है। हेमेटाइट एक प्रकार का खनिज अयस्क है जिसे जल के साथ घिसकर उसमें वृक्षों की गोंद या पशुओं की चर्बी मिलाकर वाटर कलर जैसा गाढ़ा नीले रंग का लेप तैयार कर लेते है। इसके बाद चट्टानों की सतह पर बिना किसी सुनियोजित पूर्व तैयारी के मनुष्य पहले ब्रस से चित्रकारी करता था। वह मूलतः दातून की कूची रही होगी। इन शैल चित्रों में गहरे लाल रंग का प्रयोग देखा जा सकता है। अनुसंधान दल में डॉ नवल त्रिपाठी, प्राचार्य, डा बद्री विशाल, अवनीश कुमार तथा धारकुंडी वन क्षेत्र के कर्मचारी शामिल रहे। (हि.स.)