Thursday, November 21"खबर जो असर करे"

गोरखपुर के जानीपुर निवासी इंद्रप्रकाश प्राकृतिक खेती से कर रहे अच्छी कमाई

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक छोटे से कस्बे जानीपुर के रहने वाले इंद्रप्रकाश ने खेतीबाड़ी कर अनेक पुरस्कार लिये हैं। खेती की फसलों को प्राकृतिक ढंग से कीट नियंत्रण करने वाले इंद्रप्रकाश न सिर्फ रसायनों का प्रयोग कम कर रहे हैं बल्कि पोषक तत्वों से भरपूर शाक-सब्जी उगाकर अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। वे अपनी उपज को अच्छा से और अच्छा होने के पीछे सरकारी मदद को श्रेय दे रहे हैं और कहते हैं कि सरकार की मदद नहीं मिली होती तो गर्मी में फसल लेना मुश्किल होता।

इंद्रप्रकाश ने वर्ष 1988 में वाराणसी के यूपी कॉलेज से एग्रीकल्चर में एमएससी एजी (हॉर्टिकल्चर) की और हर युवा की तरह आर्थिक उन्नति के सपने देखने लगे, लेकिन जब कहीं सफलता नहीं मिली तब इंद्रप्रकाश ने वर्ष 2008 में पारिवारिक मजबूरी में खेतीबाड़ी शुरू की। खानदानी परिवार से ताल्लुक रखने वाले इंद्रप्रकाश अब खेती से ही दूर-दूर तक अपना प्रकाश फैला रहे हैं। ये उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील किसानों में शुमार हैं। अपनी खेती के दम पर इंद्रप्रकाश को जिले से लगायत प्रदेश और देश स्तर तक के ढेरों पुरस्कार मिल चुके हैं। इंद्रप्रकाश के 12 बीघा जमीन पर वर्तमान में लता वर्ग एवं टमाटर की फसलें लहलहा रहीं हैं। इनमें खरबूज, तरबूज, खीरा शामिल हैं।

‘खुशी’ प्रजाति का खीरा तैयार है। इसे हर रोज सुबह ही पास की मंडी में पहुंचाया जा रहा है। कुछ पीले एवं नारंगी रंग के येलो स्क्वैश (कद्दू की प्रजाति) खेत में अलग तरह की छटा बिखेर रहे हैं। वीटा कैरोटीन से भरपूर इन कद्दुओं को मेट्रो सिटीज में पहुंचाने के बाद इन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। खेत से मंडी पहुंचाने के बाद 50 रुपये प्रति किलो के भाव बिकने वाले इन कद्दुओं को 300 रुपये के असापास फुटकर भाव में बेचा जा रहा है। पीले रंग का खूबसूरत तरबूज मीठा तो है ही, इसमें बीज भी नहीं हैं। भूषण नाम की लौकी का उपज में कोई मुकाबला नहीं है। गोभी की नर्सरी डाली जा चुकी है।

कीटों एवं रोगों का नियंत्रण जैविक तरीके से कर जहरीले रसायनों का प्रयोग न्यूनतम कर दिया है। उत्पाद, स्वास्थ्य के लिए बेहतर बना रहे हैं। इससे इनके द्वारा उपजाई गई फसल की विश्वसनीयता बढ़ी है।

ऐसे कर रहे कीट नियंत्रण

इंद्रप्रकाश ने कीट नियंत्रण के लिए पूरे खेत में जगह-जगह बांस की फट्टियों पर पीले एवं हरे रंग की पॉलीथिन लगा रखी है। इन पर कीट चिपक जाते हैं। इसी तरह नर कीटो को आकर्षित करने के लिए मादा की गंध वाले ट्रैप भी लगाए हैं। मादा की गफलत में आने वाला नर इसमें फंस जाता जाता है। नर के अभाव में प्रजनन चक्र रुक जाता है और कीटों का जैविक नियंत्रण हो जाता है। खेत में जगह-जगह गेंदे के फूल भी लगे हैं। इंद्रप्रकाश कहते हैं कि इससे टमाटर में लगने वाले ‘निमिटोड’ नामक कीट का नियंत्रण होता है। तितलियां और मधुमक्खियां आकर्षित होती हैं। इनके आने से आसपास की शेष फसलों के परागण में वृद्धि होती है और अच्छे फल लगते हैं। फिर अच्छी उपज मिलाना स्वाभाविक है।

सरकार ने मदद की, गर्मी में भी मिलने लगी उपज

इंद्रप्रकाश कहते हैं कि उपज बढ़ाने में सरकार से मिली योजनाओं का भी बहुत योगादान है। बिना सरकार के सहयोग के गर्मी में श्रम साध्य सब्जी की इतनी खेती असंभव थी। न्यूनतम लागत से ड्रिप एवं स्प्रिंकलर लग सका। सिंचाई एवं श्रम की लागत बहुत कम हो गई। अब पूरे खेत की सिंचाई में मात्र 06 घंटे लगते हैं। 60-90 प्रतिशत पानी की बचत बोनस है। ड्रिप से सिर्फ पौधों को पानी मिलने से खर पतवारों का भी जैविक तरीके से नियंत्रण होता है। लागत कम होने से लाभ बढ़ता है।

साल के आठ महीने में 15 को रोजगार

इंद्रप्रकाश कहते हैं कि किसान केवल अन्नदाता ही नहीं है, रोजगार देने वाला भी है। साल के आठ महीने में केवल इस 12 बीघे जमीन की बदौलत 12 से 15 लोगों को रोजगार देता हूं। इनमें 80 फीसद महिलाएं होती हैं, क्योंकि नर्सरी डालना, उनको सुरक्षित खेत तक पहुचाना, नाजुक पौधों का रोपण, निराई, तुड़ाई और सुरक्षित पैकिंग के मुख्य काम वह पुरुषों की अपेक्षा बेहतर कर लेती हैं। (हि.स.)