– कुलभूषण उपमन्यु
भारत में गाय और भैंस की कुल संख्या करीब 30 करोड़ है। 12 किलोग्राम प्रति पशु की दर से प्रतिदिन 360 करोड़ किलोग्राम गोबर पैदा होता है। एक किलोग्राम बायो गैस बनाने के लिए 20 किलोग्राम गोबर चाहिए। इसका अर्थ हुआ 18 करोड़ किलोग्राम गैस प्रति दिन। इसे सिलेंडर में भरें तो एक करोड़ बीस लाख सिलेंडर रोज की क्षमता देश में है। यदि इस संसाधन को पूरी तरह से प्रयोग करने की क्षमता हासिल कर ली जाए तो देश की 50 फीसद ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।
इसके लिए सारी तकनीक तो उपलब्ध ही है। केवल दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ जुट जाने की बात है। गोबर गैस बनाने के दोहरे फायदे हैं। एक तो ऊर्जा पैदा होगी, जो हमारी खनिज तेल पर निर्भरता को कम करेगी। दूसरा बढ़िया खाद भी प्राप्त होगी, किसान को नकद लाभ होगा और खनिज तेल का उपयोग कम होने से वायु प्रदूषण भी कम होगा। इतने बड़े संसाधन के होते हुए इसकी अनदेखी करना ठीक नहीं। इस संसाधन के दोहन से कितने ही रोजगार भी पैदा होंगे। इसी तरह गोमूत्र का दवाई के लिए उपयोग करके भी किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है।
आजकल गोबर से अन्य कई तरह के उत्पाद बनाने का भी चलन तेज हुआ है। गोबर से कागज बनाया जा रहा है। जो अच्छी गुणवत्ता का है और कागज बनाने की प्रक्रिया के बाद बचे अवशेषों से खाद बनाई जा सकती है। इससे भी पेड़ बिना काटे कागज उत्पादन करके पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है। गोबर से थोड़ी मिट्टी मिलाकर बढ़िया गमले, दीये आदि भी बनाए जा रहे हैं। इसके लिए लघु मशीनें भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा गो काष्ठ का भी उत्पादन लाभदायक हो सकता है।
इसके लिए अलग-अलग डाई से गोल या चौकोर गोबर की लकड़ियां बनाई जा सकती हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में इन लकड़ियों का प्रयोग हवन और शवदाह के लिए करने का चलन बढ़ रहा है। ये लकड़ियां बनाने की मशीन भी उपलब्ध है जो दबाव से एक सिरे से गोबर डाल कर दूसरे सिरे से लकड़ी निकालती है। इन लकड़ियों के अच्छे प्रज्ज्वलन के लिए इनके बीच में एक इंच का छेद रहता है। शवदाह के लिए दो क्विंटल गोबर की लकड़ी पर्याप्त होती है। 6-7 रुपये किलोग्राम तक बिक जाती है।
इसके अलावा जैविक खाद बनाकर बेचना भी काफी लाभदायक हो सकता है। इसकी मांग भी बहुत है। गोबर में 20 फीसद मिट्टी और चूना मिला कर ईंट भी बनाई जा रही हैं। यह ईंटें मकान को गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म रखती हैं। ऐसी संभावनाओं का दोहन किया जाना चाहिए जिसे सरकार द्वारा प्रोत्साहन देकर और तकनीक एवं मशीनरी की जानकारी और प्रशिक्षण दिलवा कर संभव किया जा सकता है। एक बिलकुल नई संभावना का द्वार भी खुल रहा है।
आईआई टी से पढ़े डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा ने गोबर से नैनो सैलूलोज बनाने की विधि ईजाद की है। यह बहुत कीमती रसायन है। इसे कागज उद्योग, कपड़ा बनाने, दवाई उद्योग आदि में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी अंतरराष्ट्रीय मांग है। एक ग्राम की कीमत दो-तीन हजार रुपये है। एक किलोग्राम गोबर में से 6 से आठ ग्राम तक नैनो सैलूलोज निकलता है। इसके बाद बचने वाला पदार्थ लिग्निन कहलाता है। यह भी 40-50 रुपये किलोग्राम तक बिक जाता है।
इस निर्माण प्रक्रिया का डॉ. वर्मा ने पेटेंट भी करवा लिया है। सरकार इस उद्योग के विस्तार के तरीके निकाल कर पशुपालकों को काफी लाभ पंहुचा सकती है। पशुधन को लाभकारी बनाने के इन तरीकों से पशुपालन और आकर्षक हो जाएगा और गैर दुधारू पशु भी लाभदायक हो सकेंगे। इससे बेसहारा पशुओं की समस्या पर भी लगाम लगाने में मदद मिलेगी और रोजगार के अवसर भी अपने ही संसाधनों के बेहतर उपयोग से पैदा किए जा सकेंगे। शुरुआत में गोसदनों और बड़ी डेयरियों से एक मिश्रित गतिविधियों का प्रयोग किया जा सकता है। राजस्थान के कोटा के जयहिंद नगर निवासी और डेढ़ साल पहले स्टार्टअप गोबर वाला डॉट कॉम शुरू करने वाले डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा का कहना है कि गाय के गोबर के केमिकल से सेना के जवानों की वर्दी भी बन सकती है।
(लेखक, मशहूर चिंतक और पर्यावरणविद् हैं।)