Friday, November 22"खबर जो असर करे"

बूढ़े बांध, बड़ी चिंता

– मुकुंद

यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी ने 2021 में अपनी रिपोर्ट में दुनिया को बड़े बांधों के खतरों के संदर्भ में आगाह किया था। इसमें चेतावनी दी गई थी कि अगले 29 वर्षों में दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी ऐसे बड़े बांधों के साये में होगी जो या तो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं या पूरी करने वाले हैं। इस हालात से भारत की संसद भी अवगत है। देश के पुराने बांधों की सुरक्षा पर गठित एक संसदीय समिति ने पिछले महीने चिंता जताई है। उसने अपनी रिपोर्ट 20 मार्च को संसद को सौंपी है। समिति ने अपनी रिपोर्ट देश के 100 साल से अधिक पुराने बांधों पर चिंता जताते हुए इन्हें बंद करने की सलाह दी है।

समिति ने कहा है कि भारत में 100 साल से अधिक पुराने 234 बड़े बांध हैं। इनमें से कुछ तो 300 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। देश में इस समय 5,334 बड़े बांध हैं। 411 अन्य बड़े बांध निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। महाराष्ट्र 2,394 बांधों के साथ पहले स्थान पर है,। मध्य प्रदेश और गुजरात बांधों की संख्या के लिहाज से दूसरे और तीसरे पायदान पर हैं। इसके बाद जल शक्ति मंत्रालय की तंद्रा भंग हुई है। उसने सिफारिश की है कि बांधों के जीवन और संचालन का आकलन करने और एक व्यवहार्य तंत्र को विकसित किया जाए। मंत्रालय का कहना है कि राज्यों को भी उन बांधों को बंद करने के लिए राजी किया जाए, जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं।

वर्ल्ड रजिस्टर ऑफ लार्ज डैम्स का कहना है कि दुनिया में 58,713 बड़े बांध हैं। इनमें से सबसे ज्यादा चीन में 23841 बड़े बांध हैं। इसके बाद अमेरिका 9,263 का नंबर आता है। करीब 93 फीसदी बड़े बांध केवल 25 देशों में स्थित हैं। ऐसे देशों में भारत भी एक है। दुनिया में बड़े बांधों का निर्माण पिछले 100 से भी ज्यादा वर्षों से किया जा रहा है। पारम्परिक रूप से इनका मकसद नदी जल को नियंत्रित करना था। मगर तेजी से बढ़ते समय चक्र के साथ अब इन्हें जल प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण, हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी और जलापूर्ति के लिए बनाया जाता है। इंटरनेशनल कमीशन ऑन लार्ज डैम्स बड़े बांधों को परिभाषित भी करता है। इस कमीशन केअनुसार 15 मीटर या उससे ऊपर की ऊंचाई और 30 लाख क्यूबिक मीटर से ज्यादा पानी को संजोने वाले बांधों को बड़े की श्रेणी में रखा जा सकता है।

यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक अमेरिका में छोटे-बड़े सभी 90,580 बांधों की औसत उम्र 56 वर्ष है। इनमें से करीब 85 फीसदी अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं। चीन में करीब 30000 बांध उम्रदराज हो चुके हैं। भारत में 1,115 बड़े बांध 2025 तक 50 वर्ष या उससे ज्यादा पुराने हो जाएंगे। 2050 तक भारत के करीब 4,250 बड़े बांध 50 वर्ष की उम्र पार कर जाएंगे। 64 बड़े बांध 150 वर्ष या उससे ज्यादा पुराने होंगे। भारत में केरल के इडुक्की जिले का मुल्लापेरियार बांध 125 साल से ज्यादा का हो चुका है। इसे 1895 में अंग्रेजों ने बनाया था।

यह बड़ा सच है कि पहाड़ी राज्यों में प्राकृतिक आपदा के समय बड़े बांधों के टूटने और उससे जानमाल की भारी क्षति होने की आशंका बरकरार रहती है। मगर कुछ लोग इसके विपरीत भी सोचते हैं। मसलन साल 2013 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा था कि यदि टिहरी बांध न होता तो ऋषिकेश, हरिद्वार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जलप्लावित हो गए होते। तब केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल के आपदा प्रबंधन शोध अधिकारी डॉ. एसपी सती ने कहा था कि यह अर्द्धसत्य है। इसे हमेशा के लिए सच नहीं माना जा सकता। वैसे बहुगुणा की इस टिप्पणी से एक बार फिर पहाड़ी राज्य में यह बहस छिड़ गई थी कि बड़े बांध उत्तराखंड के लिए वरदान हैं या अभिशाप ?

विजय बहुगुणा की टिप्पणी के दस साल बाद संसदीय समिति की रिपोर्ट ने बड़े बांधों के मोहपाश में बंधे नेताओं को असलीयत से रूबरू कराया है। अब बड़ा सवाल यह है कि पुराने हो चुके इन बांधों से कैसे मुक्ति मिले। दरअसल ऐसे बांधों को अनुपोयगी घोषित करने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसमें जल-विद्युत उत्पादन सुविधाओं को हटाना और जलग्रहण क्षेत्रों में पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य हस्तक्षेपों के माध्यम से नदी चैनलों को फिर से बनाना शामिल होता है। मगर यह पूर्ण सच है कि मनुष्य की तरह बांधों का जीवनकाल भी तय होता है। अमेरिका सहित कुछ देशों ने तो अपने बड़े बांधों को बंदकर नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को पूर्ववत कर लिया है। दुर्भाग्य से भारत में अब तक किसी भी बांध को बंद नहीं किया गया है। देश में बांध सुरक्षा हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है। इनमें गुजरात के मोरबी का माचू बांध भी हैं। यहां 36 बांध आपदा आ चुकी हैं। 1979 में लगभग 2,000 लोग मारे गए थे और 12,000 से अधिक मकान नष्ट हो गए थे।

संसदीय समिति ने इस पर जल शक्ति मंत्रालय का पक्ष भी रखा है। मंत्रालय ने समिति को सूचित किया है कि बांधों के व्यवहार्य जीवन और प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। बांधों का नियमित रखरखाव उनके स्वास्थ्य मूल्यांकन और सुरक्षा के लिए किया जाता है। बांधों का संचालन और रखरखाव राज्य सरकारें, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और निजी एजेंसियां करती हैं। केंद्र की भाजपा नीत सरकार ने 2014 में देश की कमान संभालने के बाद इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाई है। संसद बांध सुरक्षा अधिनियम-2021 को अधिनियमित कर चुकी है। इस अधिनियम 30 दिसंबर, 2021 से लागू भी हो चुका है। इस अधिनियम का उद्देश्य बांध की विफलता से संबंधित आपदाओं की रोकथाम और इनके सुरक्षित कामकाज को सुनिश्चित करने और एक संस्थागत तंत्र उपलब्ध कराने के लिए निर्दिष्ट बांध की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव सुनिश्चित करना है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)