Friday, November 22"खबर जो असर करे"

भगवा से नफरत करने वालों को लेना होगा सबक

– मृत्युंजय दीक्षित

भारत में छद्म धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाली जमात सनातन धर्म में त्याग के प्रतीक भगवा रंग से भी नफरत करती है। इसीलिए वर्षों तक भगवा आतंक की झूठी कहानी गढ़ने का प्रयास हुआ। उसमें असफल रहने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिबास पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने से लेकर फिल्मी पर्दे पर अभिनेत्री को भगवा रंग की बिकनी पहनाकर उसे बेशर्म रंग कहकर कुंठा निकाली जा रही है। इस बीच भगवा से नफरत और उसके खिलाफ विकृत राजनीति पर सबसे बड़ी खबर केरल से आई है। वामपंथी सरकार राज्य में भगवा रंग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का षड्यंत्र रच रही थी, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद व स्थानीय हिंदू संगठनो की जागरुकता के कारण इसका भांडा फूट गया।

दक्षिण के राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है, राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव क्षेत्र बढ़ रहा है तथा विश्व हिंदू परिषद व अन्य हिंदू संगठनों की सक्रियता बढ़ने के कारण केरल में घरवापसी अभियान का प्रभाव दिखने लगा है। अब लोग अपने मूल हिंदू धर्म और हिंदुत्व के प्रति फिर से आकर्षित हो रहे हैं । वामपंथ के प्रति झुकाव तेजी से कम हो रहा है। इस कारण वामपंथियों के मन में अपने अस्तित्व के लिए भय व्याप्त हो रहा है।

विगत विधानसभा चुनावमें केरल में भले ही भाजपा का खाता न खुला हो लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियों में उमड़ी भीड़ ने भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ाया। स्वाभाविक है वामपंथी घबरा गए। यही कारण है कि अब वे हिंदुत्व के प्रतीकात्मक रंग भगवा रंग विरुद्ध भी षड्यंत्र कर रहे हैं। असली विवाद केरल के तिरुअनंतपुरम में मेजर वेल्लयानी भद्रकाली देवी मंदिर और पुलिस प्रशासन के बीच का है। इसका कारण था वामपंथी प्रशासन द्वारा मंदिर प्रबंधन को यह निर्देश जारी किया जाना कि स्थानीय कालीयूट्टू पर्व के समय मंदिर में भगवा रंग से सजावट करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। मंदिर प्रबंधन को किसी और तथा तटस्थ रंगों से मंदिर की सजावट करनी होगी। मंदिर पक्ष इस पर हाई कोर्ट चला गया।

इस विवाद पर हाई कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। केरल हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि पुलिस या प्रशासन इस बात पर जोर नहीं दे सकता है कि उत्सव के दौरान मंदिरों को किस रंग से सजाया जाए। जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पी. अजीत कुमार ने बड़ी टिप्प्णी के साथ व्यापक आदेश जारी करते हुए कहा है कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन इस बात को लेकर कतई दबाव नहीं बना सकते कि मंदिर के किसी आयोजन में सिर्फ राजनीतिक रूप से तटस्थ निरपेक्ष रंगों का ही इस्तेमाल किया जाए। पूजा अर्चना, मंदिर के महोत्सवों में राजनीति की कोई भूमिका नहीं हो सकती। यह त्रावणकोर देवस्थान बोर्ड का निर्णय होगा कि मंदिर में कलीयुटटू पर्व में परंपरा और मान्यता के अनुसार कौन सा रंग प्रयोग करना है। हां, यदि आशंका है कि मंदिर परिसर या इसके आसपास कानून व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है तो प्रशासन केवल कानून व्यवस्था नियंत्रित रखने के लिए कदम उठा सकता है। केरल हाई कोर्ट का यह फैसला मंदिर प्रबंधन और भगवा रंग के इस्तेमाल करने के पक्ष में आया।

लेकिन झारखंड के पलामू जिले में महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की शोभायात्रा के स्वागत के लिए भगवा रंग का तोरणद्वार लगाया गया था जिसको लेकर मुस्लिम समाज के लोगों आपत्ति की और उसे तोड़कर फेंक दिया साथ ही स्थानीय मस्जिद से पत्थरबाजी की गई जिसके कारण वहां पर दंगे जैसी स्थिति बन गई और हालात अभी भी तनावपूर्ण बने हुए हैं । पलामू में मुस्लिम जनसंख्या अधिक है और झारखंड की सोरेन सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण की रणनीति पर अमल कर रही है, क्योंकि सोरेन सरकार को भी भगवा रंग और हिंदुत्व से नफरत है।

भगवा रंग के खिलाफ नफरत की राजनीति करने वाले दलों को केरल हाई कोर्ट ने सटीक उत्तर दिया है। भगवा रंग तो हमारे तिरंगे में भी है क्या नफरती लोग कल तिरंगे से भी भगवा को निकाल देंगे । अग्नि की ज्वालाओं और उगते हुए सूर्य का रंग है भगवा, जो सृष्टि की रचना काल से है। यह सृजन और ऊर्जा का प्रतीक रंग है । त्याग और बलिदान का प्रतीक रंग है । उत्सर्ग का रंग है भगवा ऐसे रंग से आपत्ति और घृणा? सम्पूर्ण भारतीय वांग्मय भगवा से ओत-प्रोत है। रामायण और महाभारत में भी इसके महत्व की चर्चा है। महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ पर भगवा झंडा ही विराजमान था । स्वतंत्रता के बाद भारत का ध्वज भी भगवा ही होता किन्तु जवाहर लाल नेहरू की अदूरदर्शिता के कारण ऐसा हो न सका। आज सनातन समाज को केरल हाई कोर्ट को धन्यवाद देना चाहिए कि उसने भगवा रंग के खिलाफ वामपंथी साजिश को विफल कर दिया है। साथ ही आगे की बड़ी लड़ाई के लिए अपने को तैयार रखना चाहिए।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)