Friday, November 22"खबर जो असर करे"

महाशिवरात्रि विशेष: अमंगल हारी हैं देवाधिदेव भगवान शिव

– योगेश कुमार गोयल

देवाधिदेव भगवान शिव के समस्त भारत में जितने मंदिर अथवा तीर्थ स्थान हैं, उतने अन्य किसी देवी-देवता के नहीं। आज भी समूचे देश में उनकी पूजा-उपासना व्यापक स्तर पर होती है। महाशिवरात्रि को भगवान शिव का सबसे पवित्र दिन माना गया है, जो सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी है। भारत में धार्मिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि का बहुत महत्व है। यह आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने का सुअवसर है। इस दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।

मान्यता है कि इस दिन जलाभिषेक के साथ भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सुख शांति बनाए रखने के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना गया है। धर्मग्रंथों में भगवान शिव को ‘कालों का काल’ और ‘देवों का देव’ अर्थात् ‘महादेव’ कहा गया है। एक होते हुए भी शिव के नटराज, पशुपति, हरिहर, त्रिमूर्ति, मृत्युंजय, अर्द्धनारीश्वर, महाकाल, भोलेनाथ, विश्वनाथ, ओंकार, शिवलिंग, बटुक, क्षेत्रपाल, शरभ इत्यादि अनेक रूप हैं।

सर्वत्र पूजनीय शिव को समस्त देवों में अग्रणी और पूजनीय इसलिए भी माना गया है क्योंकि वे अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और दूध या जल की धारा, बेलपत्र व भांग की पत्तियों की भेंट से ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। वे भारत की भावनात्मक एवं राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता के प्रतीक हैं। भारत में शायद ही ऐसा कोई गांव मिले, जहां भगवान शिव का कोई मंदिर अथवा शिवलिंग स्थापित न हो। यदि कहीं शिव मंदिर न भी हो तो वहां किसी वृक्ष के नीचे अथवा किसी चबूतरे पर शिवलिंग तो अवश्य स्थापित मिल जाएगा। हालांकि बहुत से लोगों के मस्तिष्क में यह सवाल उमड़ता है कि जिस प्रकार विभिन्न महापुरूषों के जन्मदिन को उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है, उसी प्रकार भगवान शिव के जन्मदिन को उनकी जयंती के बजाय रात्रि के रूप में क्यों मनाया जाता है?

इस संबंध में मान्यता है कि रात्रि को पापाचार, अज्ञानता और तमोगुण का प्रतीक माना गया है और कालिमा रूपी इन बुराईयों का नाश करने के लिए हर माह चराचर जगत में एक दिव्य ज्योति का अवतरण होता है, यही रात्रि शिवरात्रि है। शिव और रात्रि का शाब्दिक अर्थ एक धार्मिक पुस्तक में स्पष्ट करते हुए कहा गया है, ‘‘जिसमें सारा जगत शयन करता है, जो विकार रहित है, वह शिव है अथवा जो अमंगल का ह्रास करते हैं, वे ही सुखमय, मंगलमय शिव हैं। जो सारे जगत को अपने अंदर लीन कर लेते हैं, वे ही करूणासागर भगवान शिव हैं। जो नित्य, सत्य, जगत आधार, विकार रहित, साक्षीस्वरूप हैं, वे ही शिव हैं। महासमुद्र रूपी शिव ही एक अखंड परम तत्व हैं, इन्हीं की अनेक विभूतियां अनेक नामों से पूजी जाती हैं, यही सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान हैं, यही व्यक्त-अव्यक्त रूप से ‘सगुण ईश्वर’ और ‘निर्गुण ब्रह्म’ कहे जाते हैं तथा यही परमात्मा, जगत आत्मा, शम्भव, मयोभव, शंकर, मयस्कर, शिव, रूद्र आदि कई नामों से संबोधित किए जाते हैं।’’

शिव के मस्तक पर अर्द्धचंद्र शोभायमान है, जिसके संबंध में कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय समुद्र से विष और अमृत के कलश उत्पन्न हुए थे। इस विष का प्रभाव इतना तीव्र था कि इससे समस्त सृष्टि का विनाश हो सकता था, ऐसे में भगवान शिव ने इस विष का पान कर सृष्टि को नया जीवनदान दिया जबकि अमृत का पान चन्द्रमा ने कर लिया। विषपान करने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया, जिससे वे ‘नीलकंठ’ के नाम से जाने गए। विष के भीषण ताप के निवारण के लिए भगवान शिव ने चन्द्रमा की एक कला को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। यही भगवान शिव का तीसरा नेत्र है और इसी कारण भगवान शिव ‘चन्द्रशेखर’ भी कहलाए।

धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव के बारे में उल्लेख मिलता है कि तीनों लोकों की अपार सुन्दरी और शीलवती गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों और भूत-पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका शरीर भस्म से लिपटा रहता है, गले में सर्पों का हार शोभायमान रहता है, कंठ में विष है, जटाओं में जगत तारिणी गंगा मैया हैं और माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल (नंदी) को भगवान शिव का वाहन माना गया है और ऐसी मान्यता है कि स्वयं अमंगल रूप होने पर भी भगवान शिव अपने भक्तों को मंगल, श्री और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)