– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
देश की बांग्लादेश सीमा से सटे पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में 16 फरवरी को विधानसभा चुनाव है। इसमें एक ओर जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पुन: सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है तो दूसरी ओर राज्य में वाम मोर्चा-कांग्रेस गठजोड़ के साथ ही त्रिपुरा के पूर्व महाराज के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन के नेतृत्व वाली आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा भी तीसरे पक्ष के तौर पर चुनाव मैदान में है। सबके अपने-अपने जीत के दावे हैं, लेकिन जिस तरह से भाजपा ने यहां पिछले पांच सालों में कार्य किया है, उसे देखते हुए उसका पुख्ता दावा यह है कि वह फिर एक बार राज्य में सत्ता की वापसी करने वाली है।
त्रिपुरा में आप अन्य पार्टियों के साथ भाजपा के मुकाबले का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कांग्रेस और सीपीएम ताकतें हमेशा एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी रही हैं लेकिन इस बार वे एक साथ होकर भाजपा को मात देने के लिए चुनावी मैदान में हैं। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के महासचिव सीताराम येचुरी का यह बड़ा दावा है कि वे राज्य में त्रिकोणीय मुकाबले से लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को जीत मिलती देख रहे हैं। इसके पीछे का कारण उन्होंने इलेक्शन के लिए स्थानीय स्तर के नेता (टिपरा मोथा जैसे) अन्य दलों के साथ संभावित समायोजन को बताया।
येचुरी का कहना है कि भाजपा और उसकी सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने पिछले चुनाव में जनजातीय इलाकों की 20 में से 18 सीटें जीती थीं। राज्य विधानसभा की 60 में से 20 सीट जनजातीय क्षेत्रों के लिए आरक्षित हैं। भाजपा ने 2018 में कुल 36 सीटें जीती थीं, जिनमें से आधी सीट जनजातीय क्षेत्र से मिली थीं। इस बार जनजातीय क्षेत्रों में टिपरा मोथा सबसे आगे है। येचुरी ने कहा कि आईपीएफटी को भाजपा ने सिर्फ पांच सीटें दी हैं। इसका लाभ हमें होगा। वहीं, पिछले चुनाव में सीपीएम को मिले 42.22 प्रतिशत और कांग्रेस के दो प्रतिशत वोटों की तुलना में भाजपा को 43.59 फीसदी वोट मिले थे, हमें पिछली बार से इस बार अधिक मिलेगा।
येचुरी ने यह भी माना है कि टिपरा मोथा के साथ कोई चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं है, लेकिन आदिवासी पार्टी के साथ स्थानीय स्तर पर कुछ समझ कायम हो सकती है, जो राज्य के मौजूदा चुनाव में तीसरे ध्रुव के रूप में उभरी है। हालांकि वर्ष 1977 में छह महीने के लिए विपरीत ध्रुवों पर स्थित यह दोनों पार्टियां ज़रूर एक साथ आई थीं और एक समझौते के ज़रिए सरकार का संचालन भी किया था, पर ये उनका निर्णय असफल ही साबित हुआ था।
इसके उलट त्रिपुरा में भाजपा द्वारा किए गए विकास के कार्यों की अपनी लम्बी लिस्ट है, इसलिए भाजपा का मानना है कि जिन्हें हमारी सरकार में रहते हुए लाभ मिला है और आम नागरिकों का जो सामान्य जीवन सुखमय हुआ है, उसे देखते हुए त्रिपुरा का वोटर फिर से भाजपा के साथ ही आएगा। इसके साथ ही इस बार के अपने संकल्प पत्र (घोषणापत्र) में राज्य की सत्ता में लगातार दूसरी बार आने के लिए पार्टी की ओर से कई वादे किए गए हैं। चुनाव घोषणा पत्र में आर्थिक कमजोर वर्ग के लोगों, महिलाओं, छात्र-छात्राओं, आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और किसानों पर फोकस किया गया है।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में त्रिपुरा में चुनाव प्रचार किया, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली डबल इंजन सरकार ने राज्य में विकास को तेज गति दी है। राज्य की पूर्ववर्ती मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने राज्य के विकास को बाधित करने का काम किया था। लेकिन अब यहां का दृश्य पूरी तरह से बदला हुआ है। त्रिपुरा एक हिंसाग्रस्त या पिछड़े राज्य के रूप में नहीं पहचाना जाता।
इस वर्ष विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य में कई राजनीतिक दलों के झंडे दिखाई दे रहे हैं लेकिन पांच साल पहले यह संभव नहीं था, तब केवल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का झंडा दिखाई देता था। भाजपा सरकार ने राज्य को इस दहशत से मुक्ति दिलाई है। इसके साथ ही सातवें वेतन आयोग के लागू होने से राज्य के लाखों सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ा है। पहले त्रिपुरा के लोगों को पुलिस थाने पहुंचने में दिक्कत आती थी, लेकिन अब भाजपा के राज में ऐसा नहीं है। एक समय ऐसा था जब हिंसा के कारण राज्य में लड़कियों और महिलाओं को काफी अत्याचार सहने पड़ते थे लेकिन अब वे सशक्त हो गई हैं और उनका जीवन बेहतर हो गया है।
प्रधानमंत्री बताते हैं कि पिछले चुनाव में उन्होंने राज्य के लोगों से राजमार्ग, इंटरनेट, रेल और हवाई सेवाओं की सौगात देने का वादा किया था। इस दिशा में प्रयास जारी हैं। राज्य के हर गांव में आप्टिकल फाइबर नेटवर्क बिछाने का काम हो रहा है। सरकार त्रिपुरा को पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों के साथ जल मार्ग, सडक मार्ग और रेल मार्ग से जोडने का प्रयास कर रही है। त्रिपुरा दक्षिण पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार बन रहा है। प्रधानमंत्री आवास योजना ने लोगों का जीवन बदल दिया है। इस योजना के तहत पिछले पांच वर्षों के दौरान भाजपा सरकार ने तीन लाख गरीब परिवारों के लिए पक्के मकान बनाए हैं। जबकि इसके विपरीत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस के शासन में राज्य के लोगों ने बहुत दुख उठाए, कहीं भी अच्छे अस्पताल नहीं थे और न ही लोगों के पास इलाज के लिए पैसे थे। वाम दल और कांग्रेस के शासन में राज्य में बुनियादी सुविधाओं के अभाव से लोगों का जीना दूभर हो गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों ही दलों की सरकारों ने लोगों को मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रखा। लेकिन अब भाजपा के शासन में दो लाख से ज्यादा गरीब लोगों को आयुष्मान योजना का लाभ मिल रहा है।
प्रधानमंत्री का कहना है कि राज्य की डबल इंजन वाली भाजपा सरकार ने त्रिपुरा को एक नई पहचान दी है। अब यह राज्य पिछड़ा नहीं रह गया है। भाजपा सरकार ने राज्य के साढ़े तीन लाख परिवारों को मुफ्त बिजली और चार लाख परिवारों को नल से जल उपलब्ध कराने का काम किया है। राज्य सरकार गरीबों, महिलाओं और जनजातीय लोगों का जीवन-स्तर सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्रीय बजट में प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए 80 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही त्रिपुरा में सभी जरूरतमंद लोगों के लिए पक्के मकान का आश्वासन भी दिया गया है। अब ऐसे में बहुत उम्मीद यही दिख रही है कि त्रिपुरा की जनता फिर से भाजपा को विकास के आधार पर एक मौका शासन चलाने के लिए और देगी।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)