– सपना कुमारी
समाज के चतुर्दिक विकास के लिए हर नागरिक को शिक्षित होना जरूरी है. अफसोस है कि आजादी के इतने साल बाद भी हमारे देश के सभी परिवारों तक शिक्षा की पहुंच नहीं हो पायी है. यह शिक्षा पहले कुछ लोगों तक ही सीमित थी. समय ने करवट बदली और आज देश में शिक्षा का प्रचार-प्रसार तेजी से हुआ. आधुनिक युग में लोग शिक्षा का महत्व समझने लगे हैं. एक समय वंचित वर्ग के साथ ही महिलाओं को भी शिक्षा से दूर रखा गया था, लेकिन आज ये तमाम बेड़ियां टूट रही हैं. हर समाज के लोग अब पढ़ने लगे हैं. वास्तव में, एक मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा का उतना ही महत्व है, जितना जीवन जीने के लिए पानी की आवश्यकता है. शिक्षा हम सभी के भविष्य के लिए एक अहम भूमिका निभाती है.
पहले की अपेक्षा आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा का महत्व काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है. अधिक से अधिक लड़के-लड़कियों को स्कूल से जोड़ने के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. सरकार का जोर विशेषकर लड़कियों को शिक्षित करने पर है. कई राज्य सरकारें बालिका शिक्षा के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाएं भी संचालित कर रही हैं ताकि अधिक से अधिक सामाजिक, आर्थिक और वंचित परिवार की किशोरियां स्कूल तक पहुंच सकें. लड़कियों के लिए बिहार सरकार द्वारा चलायी जा रही साइकिल योजना, पोशाक योजना, छात्रवृत्ति योजना आदि का परिणाम भी देखने को मिल रहा है. प्राइमरी व माध्यमिक विद्यालयों तक तो किशोरियां पढ़ लेती हैं, लेकिन आर्थिक विपन्नता के कारण वह उच्च माध्यमिक व उच्च शिक्षा से वंचित हो जाती हैं. ग्रामीण क्षेत्र के वैसे बच्चों का उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना टूट जाता है, जो तकनीकी शिक्षा, इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट या फिर एमए, पीएचडी करना चाहते हैं. शिक्षा महंगी होने के कारण वे सिर्फ दसवीं-बारहवीं तक ही पढ़ पाते हैं. इसका सबसे अधिक प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर पड़ता है, जिन्हें घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए अपनी शिक्षा की कुर्बानी देनी पड़ती है.
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के चांदकेवारी गांव निवासी पंकज कुमार कहते हैं कि गांव के बच्चे बमुश्किल मैट्रिक-इंटर तक तो पढ़ लेते हैं, लेकिन अधिकतर बच्चे आगे की पढ़ाई गरीबी के कारण नहीं कर पाते हैं. अब तो सरकारी काॅलेजों में स्नातक में नामांकन व परीक्षा शुल्क में कई गुणा वृद्धि हो जाने से परेशानी और अधिक बढ़ गयी है. ऐसे में अभिभावक सबसे पहले लड़कियों को शिक्षा से वंचित कर देते हैं. हालांकि वह लड़कों के लिए किसी प्रकार से उच्च शिक्षा की खातिर पैसों का इंतज़ाम कर लेते हैं लेकिन लड़कियों के मामले में उनका रवैया उदासीन हो जाता है. इसी गांव के एक अभिभावक बबन भगत पेशे से मजदूर हैं. वह बताते हैं कि मेरे दो पुत्र हैं. पैसे की कमी की वजह से बड़ा लड़का इंटर के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर सका, जबकि छोटे बेटे को किसी तरह से इंटर में नामांकन करवाए हैं. बबन कहते हैं कि उन्होंने अपने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि किसी साधारण कॉलेज में भी मात्र स्नातक के लिए भी दोनों की पढ़ाई का एक साथ खर्च वहन कर पाता. इसीलिए मज़बूरी में बड़े बेटे ने शिक्षा छोड़ दी और बाहर कमाने चला गया.
मुजफ्फरपुर के एक निजी स्कूल में शिक्षक का कार्य करने वाले अवधेश कुमार दास का कहना है कि गरीब परिवार के बच्चों को आज इंजीनियरिंग, मेडिकल, यूपीएससी, बीपीएससी आदि की पढ़ाई कराना मुश्किल हो रहा है. निजीकरण के कारण शिक्षा इतनी महंगी होती जा रही है कि कोई गरीब आधी रोटी खाकर भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है. इसका खामियाजा सबसे अधिक लड़कियों को उठाना पड़ रहा है. दरअसल समाज की यह हकीकत है कि लड़की को चाहे जितना शिक्षित कर लो, उसकी शादी में दहेज़ तो देना ही होगा. ऐसे में गरीब माता पिता अपनी लड़की को पढ़ाने में खर्च करने से अधिक उसकी शादी में दहेज़ का सामान जुटाने का अधिक प्रयास करते हैं. इसीलिए उन्हें महंगी पढ़ाई करवाने में अधिक दिलचस्पी नहीं होती है. वहीं पूर्व जिला पार्षद देवेश चंद्र कहते हैं कि नई शिक्षा नीति के कारण गरीब बच्चों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना बहुत ही कठिन कार्य हो जाएगा. सरकार को कोई ऐसी ठोस नीति बनानी होगी कि सभी तक शिक्षा की लौ समान रूप से पहुंचे. हालांकि जिला शिक्षा पदाधिकारी, मुज़फ़्फ़रपुर अजय कुमार सिंह आश्वस्त करते हैं कि नई शिक्षा नीति के तहत सभी को समान रूप से शिक्षा मिलेगी.
दरअसल केवल महंगी शिक्षा और शिक्षा का निजीकरण ही नहीं, बल्कि शिक्षा की ठोस प्रणाली नहीं होने के कारण भी बच्चों एवं अभिभावकों के सपने अधूरे रह जाते हैं. यही वजह है कि समाज में लोगों के बीच अंतर और असमानता देखने को मिलती है. केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा सभी के लिए शिक्षा को सुगम बनाने के लिए बहुत से नये नियम और योजनाएं बनाई गई हैं, मगर साथ-साथ निजी शिक्षण संस्थान भी कुकुरमुत्ते की तरह खुलते जा रहे हैं. इधर, सरकारी शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता में भी वृद्धि होने की बजाए घटती जा रही है. बड़े घर के बच्चे तो मोटी-मोटी फीस देकर प्राइवेट काॅलेजों, यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लेते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धन और अति पिछड़े समुदायों के बच्चे इससे वंचित रह जाते हैं.
बिहार के कॉलेजों व यूनिवर्सिटी तो अब केवल नामांकन व परीक्षा लेने का केंद्र बन कर रह गया है. हकीकत में बच्चे कोचिंग संस्थानों का रुख कर रहे हैं. जहां उनकी भीड़ देखी जा सकती है, लेकिन काॅलेजों के वर्ग कक्ष में सन्नाटा पसरा रहता है. मुज़फ़्फ़रपुर स्थित बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डाॅ श्रीभगवान राय कहते हैं कि इसके लिए सरकार, विश्वविद्यालय, शिक्षक से लेकर अभिभावक सभी दोषी हैं. किसी एक को कटघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता है. यदि महंगी शिक्षा के लिए सरकार दोषी है, शिक्षा की गुणवत्ता के लिए कॉलेज, विश्वविद्यालय और शिक्षक दोषी हैं तो लड़का और लड़की के बीच शिक्षा के प्रति दो नजरिया के लिए अभिभावक को आरोप मुक्त नहीं किया जा सकता है. डॉ राय का यह तर्क गंभीर चिंता की ओर इशारा करता है. इसमें कोई शक नहीं है कि महंगी शिक्षा लड़कियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा बन कर उभरी है. जिसकी तरफ सरकार को ध्यान देने की ज़रूरत है.