– प्रहलाद सबनानी
हम सभी भारतीयों के लिए यह गर्व का विषय है कि आज लगभग समस्त विकसित देश भारतीय मूल के नागरिकों को अपने देशों की नागरिकता प्रदान करने के लिए लालायित नजर आ रहे हैं। यह सब इसलिए सम्भव हो पाया है क्योंकि विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों ने अपनी उच्च शिक्षा, कौशल, ईमानदारी, मेहनत के बल पर एवं महान भारतीय संस्कृति का पालन करते हुए इन देशों में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज की है तथा इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गतिशील बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया है। विशेष रूप से आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, सिंगापुर, जापान सहित अन्य कई विकसित देश आज इस प्रकार की नई नीतियां बनाने में जुटे हैं कि किस प्रकार इन देशों में रह रहे भारतीय नागरिकों को वहां के राजनैतिक क्षेत्र में भी भागीदार बनाया जाए ताकि इन देशों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था में सुधार किया जा सके।
दरअसल, इन समस्त देशों के मूल नागरिकों में आज महान भारतीय संस्कृति की ओर बढ़ता रुझान भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। यह समस्त देश आज भारतीय मूल के अपने नागरिकों को राष्ट्रीय आर्थिक सम्पत्ति मानने लगे हैं, जो इन देशों के आर्थिक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। भारतीय मूल केअधिक से अधिक नागरिकों के अपने देश में आकर्षित करने के लिए आज इन देशों के बीच एक तरह से आपस में प्रतियोगिता सी चल रही है। आज भारतीय मूल के 320 लाख से अधिक नागरिक विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे हैं। इनमें 140 लाख भारतीय नागरिक प्रवासी भारतीय के रूप में इन देशों में रह रहे हैं एवं शेष 180 लाख भारतीय मूल के रूप में इन देशों के नागरिक बन चुके हैं। कुल मिलाकर 146 से अधिक देशों में भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे हैं। केरेबियन देशों, उत्तरी अमेरिका, फीजी, दक्षिण एवं पूर्वी अफ्रीका एवं मलेशिया में तो भारतीय मूल के नागरिक लगभग 200 वर्षों (शताब्दियों) से अधिक समय से निवास कर रहे हैं एवं आज वहां भारतीयों की कई पीढ़ियां निवास करती आ रही हैं।
पिछले कुछ दशकों (दशाब्दियों) से गल्फ के देशों में भी भारतीय मूल के नागरिक निवासरत हैं एवं इन देशों की अर्थव्यवस्था को गति देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं तो वहीं वर्ष 1965 के बाद से अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, सिंगापुर एवं आस्ट्रेलिया जैसे कई विकसित देशों में भारतीयों ने अपनी एक विशेष पहचान बनाई है एवं विशेष रूप से इन देशों के सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य एवं विज्ञान जैसे क्षेत्रों के विकास में अपना अतुलनीय योगदान दिया है।
विशेष रूप से 1990 के दशक में एवं इसके बाद के वर्षों में उच्च शिक्षा एवं उच्च कौशल प्राप्त भारतीय विकसित देशों में विशेष रूप से तकनीकी एवं विज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रही बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में उच्च कौशल से युक्त पदों पर कार्य करने के लिए इन देशों की ओर आकर्षित हुए। साथ ही, इन क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से भी लाखों की संख्या में भारतीय छात्र इन देशों में अप्रवासी भारतीय के रूप में दाखिल हुए।
आज विश्व में तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाओं में, विशेष रूप से विकसित देशों सहित, इन उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयों पर जबरदस्त विश्वास की भावना पाई जा रही है क्योंकि इन भारतीयों ने अपनी महान सनातन संस्कृति का पालन करते हुए अपनी दक्षता को भी पूर्ण रूप से सिद्ध किया है। वर्ष 2016 में आस्ट्रेलिया में 6.76 लाख भारतीय मूल के नागरिक (आस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या का 2.8 प्रतिशत), जिन्होंने आस्ट्रेलिया की नागरिकता प्राप्त कर ली थी, निवास कर रहे थे। साथ ही, 4.55 लाख भारतीय (आस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या का 1.9 प्रतिशत), प्रवासी भारतीय के तौर पर आस्ट्रेलिया में निवास कर रहे थे। आस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के नागरिकों की जनसंख्या वर्ष 2006 से वर्ष 2016 के बीच 10.7 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर के साथ सबसे तेज गति से बढ़ रही है और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2031 तक भारतीय मूल के नागरिकों की जनसंख्या चीन मूल के नागरिकों की जनसंख्या को पीछे छोड़कर प्रथम स्थान पर आ जाएगी।
भारतीय मूल के नागरिक यहां सबसे अधिक पढ़े-लिखे माने जाते हैं क्योंकि भारतीय मूल के 58 प्रतिशत नागरिक उच्च अध्ययन (ग्रेजुएट एवं अधिक) प्राप्त हैं जबकि आस्ट्रेलिया मूल के 22 प्रतिशत नागरिक ही उच्च अध्ययन प्राप्त हैं। कार्य करने योग्य कुल भारतीय मूल के नागरिकों में से 88 प्रतिशत को रोजगार प्राप्त है, इनमें से 61 प्रतिशत को पूर्णकालिक रोजगार प्राप्त है एवं 27 प्रतिशत को अंशकालिक रोजगार प्राप्त है। भारतीय मूल के नागरिकों की औसत आय भी सबसे अधिक है।
वर्ष 2011 के आकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन में भारतीय मूल के 14.5 लाख नागरिक निवासरत थे, जो ब्रिटेन की कुल जनसंख्या का 2.3 प्रतिशत हिस्सा हैं। भारतीय मूल के नागरिकों में 25 प्रतिशत भारतीय ब्रिटेन के अग्रणी विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और वे उच्च कौशल प्राप्त क्षेत्रों यथा मेडिसिन, कानून, फार्मसी एवं लेखा आदि में रोजगार प्राप्त करते हैं। ब्रिटेन में भारतीय मूल के नागरिकों में बेरोजगारी की दर अन्य देशों के मूल नागरिकों की तुलना में बहुत कम है। भारतीय मूल के नागरिकों की बहुत बड़ी संख्या डॉक्टर, इंजिनियर, सालिसिटर, चार्टर्ड अकाउंटेट, शिक्षक एवं सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तो ब्रिटेन में बाहरी देशों से आने वाले उच्च शिक्षा प्राप्त कुल इंजीनियरों में 60 प्रतिशत से अधिक इंजीनियर भारतीय मूल के रहते हैं। ब्रिटेन के कुल स्वास्थ्य सेवाओं (रीटेल सहित) के क्षेत्र में तो 40 प्रतिशत भारतीय ही व्यवसायी के रूप में कार्य करते हैं।
वर्ष 2016 में कनाडा में 14 लाख भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे थे, जो कनाडा की कुल जनसंख्या का चार प्रतिशत हिस्सा थे। इनमें से 45 प्रतिशत भारतीय उच्च शिक्षा प्राप्त (यूनिवर्सिटी से डिग्री धारक) थे जबकि कनाडा की कुल जनसंख्या में 26 प्रतिशत नागरिक ही उच्च शिक्षा प्राप्त थे। भारतीय मूल की कुल जनसंख्या में से 75 प्रतिशत उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय उच्च तकनीकी क्षेत्रों, उच्च कौशल प्राप्त क्षेत्रों, व्यवसायी एवं उपक्रमी के रूप में कनाडा में कार्य कर रहे थे। इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारतीय मूल के नागरिक बहुत अच्छी संख्या में कार्यरत हैं।
सिंगापुर में भारतीय मूल के नागरिकों की कुल सात लाख की जनसंख्या चीन एवं मलाया के बाद तीसरे स्थान पर है और यह सिंगापुर की कुल जनसंख्या का नौ प्रतिशत है। सिंगापुर में निवास कर रहे अन्य देशों के नागरिकों की कुलजनसंख्या में 21 प्रतिशत भारतीय मूल के नागरिक हैं। सिंगापुर में भारतीय मूल के कुल नागरिकों में से 60 प्रतिशत नागरिक वित्तीय सेवाओं, सूचना प्रौद्योगिकी, निर्माण एवं समुद्रीय गतिविधियों, छोटे एवं मध्यम व्यवसाय जैसे क्षेत्रों में बहुत बड़ी मात्रा में कार्य करते हैं।
अमेरिका में एशियाई मूल के नागरिकों की संख्या पिछले तीन दशकों के दौरान तिगुनी से अधिक हो गई है और एशियाई मूल के नागरिकों के बीच भारतीय मूल के नागरिकों की जनसंख्या सबसे अधिक तेज गति से बढ़ रही है। आज 40 लाख भारतीय मूल के नागरिक अमेरिका में निवास कर रहे हैं जो अमेरिका की कुल आबादी का 1.2 प्रतिशत है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय मूल के नागरिकों का योगदान अतुलनीय है क्योंकि भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी (इंजीनियर), स्वास्थ्य सेवा (डॉक्टर) एवं साइंस (साइंटिस्ट) जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से बढ़ रही है।
एशियाई मूल के नागरिकों के बीच में भारतीय मूल के नागरिकों का वेतन सबसे अधिक 130,000 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष है। जो अमेरिका में निवास कर रहे समस्त नागरिकों के औसत वेतन 70,000 अमेरिकी डॉलर की तुलना में लगभग दोगुना है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक एशियाई मूल के नागरिकों के बीच, भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या चीन के नागरिकों की संख्या को पीछे छोड़कर पहिले नंबर पर आ जाएगी।
उच्च कौशल प्राप्त भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या का विकसित देशों में तेजी से बढ़ना यह भी संकेत देता है कि इन देशों के नागरिकों का भारतीय संस्कृति की ओर रुझान बढ़ रहा है क्योंकि इसी कारण के चलते वे भारतीय मूल के नागरिकों को लगातार उच्च पदों पर आसीन करते जा रहे हैं एवं भारतीय मूल के नागरिकों पर इन देशों के नागरिकों का अपार विश्वास निर्मित हो गया है। साथ ही, इन देशों के नागरिकों को अब यह आभास भी होने लगा है कि इन विकसित देशों में विशेष रूप से आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में निर्मित हुई कई समस्याओं का हल अब केवल भारतीय मूल के नागरिक ही निकाल सकते हैं, क्योंकि भारतीय सनातन संस्कृति के इतिहास में इस प्रकार की समस्याओं का कहीं पर भी जिक्र ही नहीं पाया जाता है।
(लेखक, आर्थिक विषयों के विश्लेषक हैं। )