बच्चे हो रहे सबसे अधिक प्रताड़ित
सबसे अधिक संकट कोई झेल रहा है तो वे बच्चे हैं। शिक्षा इस संघर्ष के चलते छूट ही गई है। बच्चों का अधिकार क्या होता है, यह यहां के बालकों को शायद ही पता हो! तभी तो बाल अधिकार के अंतर्गत आनेवाली परिभाषा बच्चों को नहीं मालूम है। उन्हें तो यह भी नहीं पता कि चर्च के इस आतंक के कारण उन्हें अभी कितने दिनों तक ऐसे ही खानाबदोश जैसी जिन्दगी बितानी होगी। बच्चों के साथ हो रहे व्यवहार पर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) अपनी नजर रखे हुए है। आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि पूरे प्रकरण पर नजर बनी हुई है। राज्य सरकार से बच्चों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा जाएगा।
भगवान राम ने सबसे अधिक वनवास का समय यहीं बिताया
इस जिले का इतिहास देखें तो पता चलता है कि भगवान राम ने यहां वनवास काल का सबसे अधिक समय बिताया है। पारंपरिक रूप से यह क्षेत्र रामायण में दंडकारण्य और महाभारत में कोसल साम्राज्य का हिस्सा रहा है। नारायणपुर से 11 किलोमीटर दूर राकस हाड़ा है, श्रीराम ने यहां राक्षसों का विनाश किया था। एक छोटी-सी पहाड़ी पर राक्षसों की अस्थियां, पत्थरों के रूप में अब भी मिलती हैं। पत्थर को जब जलाया जाता है या आपस में रगड़ा जाता है तो इनमें हड्डियों जैसी महक आती है। भारत में इस तरह का पाया जानेवाला यह एकमात्र पहला पत्थर है, जिसके जलने से हड्डी की महक आती है। राकस हाड़ा का अर्थ हैं- राक्षस की हड्डियां।
सैकड़ों राक्षसों का वध करने के मौजूद हैं साक्ष्य
यहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम, भैया लक्ष्मण और मां जानकी के साथ सैकड़ों राक्षसों का वध करते नारायणपुर होते हुए छोटे डूंगर पहुंचे थे, यहां से बारसूर, फिर चित्रकूट में चौमास बिताने के बाद इंद्रावती नदी के तट पर बसे गांव नारायण पाल गए। यहां से जगदलपुर होते हुए कूटूबसर की ओर चले गए थे। यहां के ग्रामीणों के मुताबिक राजा राम के द्वारा इस क्षेत्र में राक्षसों का विनाश किया गया था। फिर आज रामपथगमन के शोधकर्ता भी यही कह रहे हैं। लम्बे समय तक इस क्षेत्र में राम, लक्ष्मण और सीता ने वनवास के दौरान अपना समय गुजारा था।
ईसाईयत से विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक ”मावली मेला” भी संकट में आया
नारायणपुर में अपनी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए यहां हर साल विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक ”मावली मेला” आयोजित होता है। हजारों साल की इस प्रथा पर भी चर्च के कारण से संकट उत्पन्न हो गया है। मेले के शुभारंभ के समय रस्म अदायगी में देवी-देवता और आंगादेव के साथ-साथ क्षेत्र के सभी पुजारी बड़ी संख्या में माता मावली के परघाव रस्म अदायगी में शामिल होते हैं। माता मावली का आशीर्वाद लेकर परघाव की रस्म में जुलूस निकालकर बुधवारी बाजार में देवी-देवताओं के मिलन के बाद आड़मावली माता मंदिर के ढाई परिक्रमा की रस्म पूरी करते हैं।
शोभायात्रा के दौरान देवी-देवताओं और आंगा देवों का जगह-जगह पर मिलन और नाचने-गाने का सिलसिला चलता रहता है। इस मेले में यहां की संस्कृति को देखने के लिए महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के कई जिलों के लोगों के साथ ही विदेश से भी लोग आते हैं। मेला क्षेत्र का सबसे बड़ा लोक उत्सव है। लेकिन आज इसी उत्सव को आयोजित करने वालों का दर्द है कि अब हमारे युवा इसमें हिस्सा नहीं ले रहे। मेले में आने वालों की कमी हो रही है। ईसाई मिशनरी के भ्रम एवं जनजाति परम्परा से दूर करने की उनकी साजिश में भोला-भाला समाज फंसता जा रहा है। यही कारण है कि आज बस्तर संभाग में ईसाइयत के आतंक के कारण जनजातीय समाज द्वारा घोषित किए गए बंद एवं चक्का जाम को अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है।
नष्ट हो जाएगी दंडकारण्य संस्कृति
जनजाति समाज के आज अधिकांश लोग खुले तौर पर यह कह रहे हैं कि जिस तेजी से ईसाई छल एवं मतांतरण का खेल हो रहा है, यदि इसी प्रकार चलता रहा तो हमारी संस्कृति पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। पहले देव उठाने के लिए लोगों की भीड़ लगती थी लेकिन अब लोगों को इसके लिए भी बुलाना पड़ता है। वनवासी समाज हिंसक नहीं है बल्कि उसे अपनी परंपराएं सबसे ज्यादा प्यारी हैं, इसलिए आज वह ईसाई मतांतरण के विरोध में सड़कों पर विरोध करने के लिए मजबूर है।
पहले गरीब और बीमार लोगों को बना रहे शिकार
नारायणपुर में गरांजी गांव निवासी सीताराम पटेल का कहना है कि कोई भी हमारी संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश करेगा तो हम उसका विरोध करेंगे। यहां जनजाति समाज का यह भी मानना है कि यदि उनकी जमीन पर गैर वनवासी को दफनाया जाएगा तो उनकी जमीन कलुषित हो जाएगी। देवता नाराज होंगे और उनकी शक्ति भी कम होगी। उनका एक आरोप यह भी है कि चर्च जानेवाले लोगों में एक बात समान रूप से देखी जा सकती कि वह किसी न किसी बीमारी से जूझते नजर आते हैं।
ईसाई मिशनरी सबसे पहले गरीब और बीमार लोगों को ही अपना शिकार बना रही है। लालच देकर बड़े पैमाने पर ईसाई मतांतरण किया जा रहा है। इस साजिश को अंजाम देने के किए ईसाइयों ने जनजातीय किशोरियों, युवतियों को प्रेमजाल में फंसाना शुरू किया है। चंगाई सभा में विभिन्न बीमारियों के ‘ईसाई’ बनने के बाद ठीक हो जाने की बात कही जाती है, जिससे प्रभावित होकर सैकड़ों लोगों ने यहां ईसाई मत अपना लिया है।
मतांतरित ईसाई बना रहे जनजाति रीति-रिवाजों का मजाक
जनजाति गौरव समाज के अध्यक्ष पुरुषोत्तम शाह का कहना है कि पूरे जिले में ईसाइयों के द्वारा अवैध मतांतरण की गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, जिससे न सिर्फ समाज में वैमनस्यता बढ़ रही है, बल्कि मैत्रीपूर्ण संबंध का ताना-बाना भी टूट रहा है। जनजातीय क्षेत्रों में मतांतरित ईसाइयों द्वारा जनजाति संस्कृति, पूजन पद्धति, परंपरा एवं रीति-रिवाजों का उपहास उड़ाया जा रहा है।
मूल जनजाति समाज के संरक्षकों का मिशनरी से विरोध स्वाभाविक
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीएस रावते का इस बात पर जोर है कि बस्तर में मतांतरण पहले कभी हिंसक नहीं रहा, जो अब होने लगा है। यदि इसी तरह चलता रहा तो बस्तर की मूल जनजाति संस्कृति पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। इसलिए मूल जनजाति समाज के संरक्षकों का मिशनरी से विरोध स्वाभाविक है। सर्व आदिवासी समाज महिला प्रभाग की अध्यक्ष रंजना का चर्च पर आरोप है कि बस्तर संभाग के नारायणपुर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत एड़का के आश्रित ग्राम गौरों में मूल जनजातीय संस्कृति मानने वाले ग्रामीणों पर नव मतांतरित ईसाइयों के समूह ने पादरी के नेतृत्व में प्राणघातक हमला किया। ईसाइयों ने लाठी-डंडों एवं धारदार हथियारों का प्रयोग कर मूल जनजातीय संस्कृति के लोगों की हत्या का प्रयास किया था। बीते 31 दिसंबर और एक जनवरी को ईसाई उपद्रवियों ने आतंक मचाते हुए जनजाति नागरिकों पर जानलेवा हमला किया, जिसका हम सभी विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद जनजाति समाज ने पुलिस के समक्ष आरोपितों की सूची सौंपी और शिकायत दर्ज कराई। इसके बावजूद पुलिस-प्रशासन ने उचित कार्रवाई नहीं की। इन सभी घटनाक्रमों के चलते जनजाति समाज ने शांतिपूर्ण तरीके से बस्तर संभाग के सभी जिलों में बंद का आह्वान किया, जिसके बाद देखते ही देखते पूरे क्षेत्र में इसका असर दिखाई देने लगा है।
रोमन कैथोलिक चर्च से जुड़े लोगों की संख्या 2.25 लाख
छत्तीसगढ़ में रोमन कैथोलिक चर्च से जुड़े लोगों की संख्या 2.25 लाख और मेनलाइन चर्च से जुड़े लोगों की संख्या लगभग 1.5 लाख है। इसमें से अधिकांश जनजाति समाज से मतांतरित होकर ईसाई बने हैं। यह लोगों की संख्या आधिकारिक रूप से घोषित ईसाइयों की है जो आधिकारिक रूप से बने चर्चों में जाते हैं। लेकिन राज्य में कई असंगठित पैराचर्च जो हर जनजातीय बस्ती में मौजूद हैं। ऐसे असंगठित पैराचर्चों में जानेवाले लोगों की राज्य भर में कुल संख्या 9 लाख है, जिसमें बस्तर संभाग के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। अब ऐसे असंगठित चर्च में रविवार को होनेवाली प्रार्थना सभाओं में गैर-ईसाई जनजातियों को शामिल किया जाता है, जिसके बाद विभिन्न तरीके से उनके मतांतरण की योजना बनाई जाती है। इन असंगठित चर्च के मायाजाल के माध्यम से ही जनजातियों की शुरुआती स्क्रीनिंग होती है, जिसके बाद धन, नौकरी, विवाह, स्वास्थ्य, समाज और अन्य प्रकार के प्रलोभन देकर उन्हें ईसाई बनाया जाता है। (हि.स.)