Friday, November 22"खबर जो असर करे"

इतिहास में शोध का दायरा बढ़ाने की वकालत के मायने

– कमलेश पांडेय

क्या आपको पता है कि आधुनिक इतिहास में शोध का दायरा बढ़ाने की वकालत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्यों कर रहे हैं? जवाब होगा, शायद इसलिए कि साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा रणनीतिक रूप से लिखवाए गए ऐतिहासिक कथ्यों और भ्रामक तथ्यों से जनमानस को मुक्ति मिले। देश शोधपूर्ण तथ्यों, लोकश्रुतियों में रचे-बसे कथ्यों से अवगत हो सकें। भारतीय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक चेतना को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए यह बहुत जरूरी है। यह आज की सबसे बड़ी वैज्ञानिक और विषयगत जरूरत है। नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय की वार्षिक आम बैठक में प्रधानमंत्री की टिप्पणी के कई मायने हैं। हालांकि, जब आप इस नजरिये से यानी मध्यकालीन भारतीय इतिहास और प्राचीन भारतीय इतिहास को भी शोधपरक दृष्टि से देखेंगे, जांचेंगे, परखेंगे और फिर लिखेंगे तो आम जनमानस में वह इतिहास दृष्टि विकसित होगी, जिससे वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य को भी सुधारा और संवारा जा सकता है। बस जरूरत यह है कि हम अपने भूतकाल के प्रति स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टि विकसित करें, जिससे हर सुशिक्षित भारतीय में अपने इतिहास के प्रति एक नवीन जिज्ञासा पैदा हो। उनमें ऐसी ललक जगे, जिसे देर सबेर हर भारतीय में पैदा किया जा सके।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक की अध्यक्षता करते हुए शोध और युवाओं में बौद्धिकता को प्रोत्साहित करने तथा इतिहास को अधिक रुचिकर बनाने पर जोर दिया है। उनका सपना है कि भविष्य में यह संग्रहालय देश- दुनिया से दिल्ली आने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण के केंद्र के रूप में उभरे। प्रधानमंत्री ने जिस तरह से देश के अकादमिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों से समाज सुधारक दयानंद सरस्वती और उनके आर्य समाज पर शोधपरक कार्य करने का आह्वान कर अच्छा काम किया है। अगर समाज सुधारकों और उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं के समकालीन योगदान पर शोधपरक कार्य किए जाते हैं तो उनके बारे में अब तक गढ़ी गई और गढ़वाई गई तरह-तरह की असामाजिक भ्रांतियों और उसके बियावान में भटकते भारतीय जनमानस को एक सही और सर्वानुकूल दिशा प्रदान की जा सकती है।

खासकर बहुमत आधारित लोकतंत्र के आगमन के बाद फूट डालो और शासन करो की नीति के तहत हमारे राजनेताओं और समाजसेवियों द्वारा जिस तरह से ऐतिहासिक तथ्यों व कथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई या की जा रही है, वह चिंताजनक है। इससे प्रभावित भारतीय समाज जाति-धर्म-भाषा-क्षेत्र-लिंग आदि के आधार पर बंटते जा रहा है। समाज को पुनः एक सूत्र में पिरोने की जरूरत है। इसके लिए इतिहास पुनर्लेखन की भी आवश्यकता है। यदि भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया और उसके तहत मिल रहे जनादेशों पर आप बरीकीपूर्वक नजर दौड़ाएंगे तो यहां आपको विकसित की जा रही ओछी मानसिकता का पता चलेगा, जिसे हतोत्साहित करने की जरूरत है। ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब व्यक्तियों, संस्थानों और विषयों के संदर्भ में आधुनिक भारतीय इतिहास के दायरे को और अधिक व्यापक बनाएंगे।

ऐसा करने के लिए वर्तमान के साथ भावी पीढ़ियों के लाभ के लिए लेखा परीक्षण और शोध स्मृति दर्ज करने के लिए सामान्य रूप से देश में संस्थानों की जरूरत पड़ेगी। इनमें यह संग्रहालय अग्रगण्य है, क्योंकि यह संग्रहालय वास्तव में उद्देश्य पूर्ण और राष्ट्र केंद्रित है, व्यक्ति केंद्रित नहीं है। यह न तो अनुचित प्रभाव से और न ही किसी अनावश्यक तथ्यों के अनुचित अभाव से ग्रस्त है। कुछ ऐसे ही संस्थानों को इस दिशा में अग्रसर और तत्पर होना चाहिए। ऐसा इसलिए कि किसी भी देश-प्रदेश का इतिहास उसकी भावी शिक्षा का आधार भी होता है। यह इतिहास मानव जीवन को परिष्कृत, पुष्पित तथा पल्लवित करता है। यह मनुष्य को परिपक्व, बुद्धिमान तथा अनुभवी बनाने वाला एक उपयोगी विषय है। अतीत के आधारशिला पर वर्तमान का निर्माण करने तथा भावी मार्गदर्शन के लिए इतिहास मनुष्य को सक्षम बनाता है। शायद इसलिए इतिहासकार बेकन ने लिखा है कि इतिहास मनुष्य को बुद्धिमान बनाता है।

यह सर्वमान्य तथ्य है कि इतिहास का अध्ययन करने से हमें जटिल प्रश्नों और दुविधाओं को समझने और समझाने में मदद मिलती है। दरअसल, इतिहास हमें अतीत में समस्याओं का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए एक वैचारिक उपकरण देता है। यह हमें उन प्रतिमानों को देखने के लिए तैयार करता है जो वर्तमान में अदृश्य हो सकते हैं। कई तरह से इतिहास उन घटनाओं और कारणों की व्याख्या करता है जिन्होंने हमारे वर्तमान विश्व में योगदान दिया है। कुल मिलाकर मानव अनुभव की विविधता का अध्ययन करने से हमें उन संस्कृतियों, विचारों और परंपराओं की सराहना करने में मदद मिलती है जो हमारी अपनी नहीं हैं और उन्हें विशिष्ट समय और स्थान के सार्थक उत्पादों के रूप में पहचानने में इतिहास हमें यह महसूस करने में मदद करता है कि हमारा अनुभव हमारे पूर्वजों से कितना अलग है, फिर भी हम अपने लक्ष्यों और मूल्यों में कितने समान हैं।

आज इतिहास का अध्ययन करके हमें मानव अनुभव की प्रयोगशाला तक पहुंच प्राप्त करने की जरूरत है।जब हम इसका यथोचित रूप से अच्छी तरह से अध्ययन करते हैं, और मन की कुछ उपयोगी आदतों को प्राप्त करते हैं, उन शक्तियों के बारे में कुछ बुनियादी डेटा प्राप्त करते हैं जो हमारे अपने जीवन को प्रभावित करते हैं, तो हम प्रासंगिक कौशल और सूचित नागरिकता, महत्वपूर्ण सोच और सरल जागरुकता के लिए एक बढ़ी हुई क्षमता के साथ उभर कर सामने आते हैं। यदि हम इतिहास की इन बारीकियों को समझ पाए, अपनी समकालीन और परवर्ती पीढ़ियों को समझा पाए, तो निःसंदेह वह नवीन प्रवृति विकसित होगी, जिससे न्यू इंडिया यानी नया भारत बनेगा। यह भारत ऐतिहासिक रूप से और अधिक परिपक्व और मजबूत होगा, जो वर्तमान और भविष्य दोनों की जरूरत है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)