– प्रियंक कानूनगो
भारत सदा से ही अपने मजबूत सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश के कारण अलग पहचान के साथ विश्व का मार्गदर्शन करता आ रहा है। हमारी संस्कृति और समाज चिरकाल से ही ऐसे मजबूत मूल्यों पर खड़ा है, जिसने अनेकों विपरीत परिस्थितियों में भी अपने को कायम रखते हुए न सिर्फ अपना बल्कि विश्व के विकास को भी गति दी है। किंतु हमारी यही विलक्षणता अकसर ऐसी शक्तियों के निशाने पर रही है जो अपनी संस्कृति और सामाजिक ढांचे को हम पर थोपना चाहते हैं। हमारा इतिहास ऐसे अनेकों उदाहरणों से पटा पड़ा है जब हमने अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए बलिदान दिए हैं।
हालांकि इतिहास के स्थान पर वर्तमान में होने वाले सांस्कृतिक आक्रमणों का स्वरूप बदल चुका है। वर्तमान में अपने सांस्कृतिक मूल्यों को थोपने के लिए बच्चों और टीनेजर को निशाना बनाया जा रहा है। कई मायनों में किसी संस्कृति को अपहृत करने का यह सबसे आसान तरीका भी है। कल्याण और नए विचारों को नाम पर बच्चों और टीनेजर के संबंध में ऐसी चर्चाओं को बल दिया जा रहा है जो हमारी संस्कृति और सामाजिक ढांचे तथा हमारी चिंताओं के विपरीत हैं। टीनेजर में रोमांटिक रिलेशनशिप पर चर्चा एक ऐसा ही विषय है जिसकी मुखालफत आजकल हमारे देश में भी की जा रही है और अनेक मंचों पर इस पर चर्चा जारी है।
उल्लेखनीय है कि निर्भया मामले के बाद देश में सख्त कानून की मांग हुई और उसके बाद भारत में बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए विश्व के सबसे सख्त कानूनों में से एक पॉक्सो अधिनियम लागू हुआ। इसके साथ ही बाल संरक्षण का विस्तृत और प्रभावी तंत्र भी विद्यमान है। जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र बच्चों में किसी भी प्रकार के यौन शोषण को अपराध माना गया है। किंतु नई चर्चाओं में अब ऐसा देखने को मिल रहा है कि टीनेजर से बनाए गए यौन संबंधों को रोमांटिक रिलेशनशिप बताकर उसे कानून के उल्लंघन के दायरे से हटाने के प्रयास हो रहे हैं। इस संबंध में जो तर्क दिए जा रहे हैं वह भी अपुष्ट और अपरिपक्व हैं।
रोमांटिक रिलेशनशिप को मान्यता देना पूर्णतः पश्चिमी देशों के सामाजिक, सांस्कृतिक पक्ष का नेतृत्व करता है और भारत के मूल को समझे बिना यहां पर इस तरह की प्रथाओं की मान्यता का समर्थन करना हमें हमारे मूल से विमुख करने का प्रयास है। भारत ने हमेशा मानवता की भलाई को प्राथमिकता दी है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी ऐसे प्रयास का समर्थन करता है जो मानवता के हित में है। किंतु इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को ताक पर रखकर कोई भी ऐसा कार्य करने के लिए बाध्य हैं जो हमारे मूल सामाजिक ढांचे के विरुद्ध हो।
बात करें ऐसे संबंधों की तो पश्चिमी देशों में वहां के समाज और सांस्कृतिक मूल्यों के हिसाब से इसे तवज्जो दी गई होगी। किंतु वर्तमान में पश्चिमी देशों के साथ-साथ विश्व भर में कई देशों में इस तरह के संबंधों के नकारात्मक पहलु भी सामने आए हैं। जिस भी समाज में इसे मान्यता दी गई है वहां पर बच्चों को ग्रूम करके उन्हें यौन शोषण तथा देह व्यापार जैसे घृणित कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने के मामले लगातार दृष्टिगोचर हो रहे हैं। यह सब रोमांटिक रिलेशनशिप के नाम पर हो रहा हैं, जिससे ऐसा करने वाले लोग कानून की गिरफ्त में नहीं आते। साथ ही संगठित रूप से इस तरह के रिलेशनशिप का इस्तेमाल मानव तस्करी के लिए भी किया जा रहा है। यह तो एक ऐसा पहलु है जो हम सबके सामने है और अनेकों मीडिया रिपोर्ट्स तथा लेखों में इस पक्ष को उजागर किया गया है।
ऐसा नहीं है कि यह उदाहरण सिर्फ विदेशों में दृष्टिगोचर हैं, हमारे समक्ष भी कई बार ऐसे मामले आए हैं जिसमें बालिकाओं को प्रेम के जाल में फंसाकर यौन शोषण तथा अन्य प्रकार के अनैतिक कार्यों के लिए इस्तेमाल किया गया हो। यह सब तब हो रहा है जब हमारे देश में बच्चों के यौन शोषण के संबंध में एक सख्त कानून प्रभावी हो। रुढ़िवादी मान्यताओं के चलते बाल विवाह में भी ऐसी दलील दी जाती है। हालांकि पॉक्सो अधिनियम जैसे कानूनों का ही प्रभाव है कि यह इस तरह के अवैध कार्य सीमित हैं और हम दोषियों को सजा देकर ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगा पा रहे हैं, अन्यथा हमारे देश में भी पश्चिमी देशों की भांति गिरोह बनाकर बालिकाओं को प्रेम जाल में फंसाने का संगठित व्यापार करने वालों के हौंसले बुलंद हैं।
शिक्षा की ओर देखें तो भारत में आधुनिक शिक्षा के स्तर में लगातार सुधार हो रहा है और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 इसमें प्रमुख भूमिका निभाता रहा है, जो 06-14 आयुवर्ग के बच्चों के 08 कक्षा तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है। हम अब इससे आगे बढ़ते हुए अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से इसे 12वीं कक्षा तक करने की दिशा में अग्रसर है, जिससे स्कूल ड्रापआउट को कम करते हुए सभी को शिक्षित किया जा सके। किंतु एक ओर जहां हम 12वीं कक्षा तक शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं वहीं बच्चों के रोमांटिक रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देकर हम उसी क्षण इस अधिकार से वंचित कर देंगे। क्योंकि स्पष्ट है जब बच्चे खासकर टीनेजर ऐसे संबंधों में पड़ते हैं तो वहां उनकी शिक्षा बाधित होने की प्रबल संभावना रहती है। ऐसे में जब हम अपने समाज को शिक्षा के शिखर तक पहुंचाना चाहते हैं, रोमांटिक रिलेशनशिप की परिकल्पना हमारे इस पथ में एक बड़ी बाधा साबित हो सकती है।
इसके साथ ही ऐसा भी देखा गया है कि जोबालक-बालिकाएं रोमांटिक रिलेशनशिप में आ जाते हैं, उनके व्यवहार में नकारात्मक बदलाव होने की प्रबल संभावना रहती है और उनकी सामाजिक शिक्षा प्रभावित होती। ऐसे मूल्यवान समय में जब वह अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर आगे का पथ प्रशस्त कर रहे होते हैं, उस समय ऐसे संबंध में आने से न सिर्फ उनकी शिक्षा बाधित होती है बल्कि देश अपनी मूल्यवान प्रतिभा को भी खो रहा होता है, जिसपर उसका भविष्य टिका है।
बात करें अन्य पहलुओं की तो ऐसे संबंधों का स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर होता है। यह आमतौर पर देखा गया है कि जब कोई बालिका प्रेमजाल में फंसकर गर्भवती हो जाती है तो न सिर्फ यह उसके स्वास्थ्य के लिए खराब होता है बल्कि जिस बच्चे को वह जन्म देती है वो भी अनेकों स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित होते हैं। इसका एक नकारात्मक सामाजिक पहलु भी है। हमारे समाज में रोमांटिक रिलेशनशिप को आमतौर पर सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिली है। ऐसे में जब बालिकाएं असुरक्षित यौन संबंधों के कारण गर्भवती होकर किसी बच्चे को जन्म देती है तो सामाजिक स्वीकार्यता न मिलने से मां और बच्चे दोनों का जीवन कष्टकारी हो जाता है। भारत में बच्चों के संरक्षण से संबंधित कानून, नीतियां और योजनाएं उनकी आयु के विकास के स्तर को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं। इन सभी पहलुओं के मद्देनजर ही बच्चों के सभी प्रकार के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रावधान विशेषकर बच्चों के संबंध में लाए गए हैं।
ऐसी स्थिति में जब ऐसा कोई गैर सांस्कृतिक और सामाजिक पहलु जो उस समाज में ही पूर्णतः फलीभूत नहीं है जहां उसका प्रादुर्भाव हुआ है तो दूसरा समाज उसको कैसे मान्यता दे सकता है, जिसका अपना समाज स्थायी और आदर्श मूल्यों पर स्थापित हो तथा उसकी अपनी अलग तरह की समस्याएं हों। वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का यही उद्देश्य है कि हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को प्राथमिकता देते हुए देश के विकास को दिशा दे। अतः ऐसे में हम किसी भी ऐसी परिकल्पना जिसका उद्देश्य हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध हो तथा समाज में नई तरह की चुनौतियों को जन्म दे, मान्यता नहीं दी जा सकती। हम अपने बच्चों को संरक्षण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और नए भारत के निर्माण की ओर अग्रसर हैं।
(लेखक राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष हैं।)