इसके पहले कोलकाता में तीन विज्ञान संग्रहालय हैं, जिसमें रेलवे से लेकर युद्धक विमानों तक और नाव से लेकर पुरातत्व खुदाई व जीवाश्म विज्ञान तक के विषयों को समाहित किया गया है। लेकिन दक्षिण कोलकाता में बना यह पहला ऐसा संग्रहालय है जो केवल खगोल विज्ञान पर आधारित है।
कोलकाता के इंडियन सेंटर फॉर स्पेस फिजिक्स (आईसीएसपी) के निदेशक और खगोलविद प्रोफेसर संदीप चक्रवर्ती ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा, मैंने नासा में शोध किया था। मैंने दुनिया के विभिन्न अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान केंद्रों का दौरा किया है और उनमें काम किया है। हालांकि जो संग्रहालय कोलकाता में बन रहा है वह अपने आप में अद्भुत है। इसमें मंगल ग्रह के पत्थर के टुकड़ों से लेकर अंतरिक्ष में चक्कर लगाने वाले क्षुद्र पिंडों के हिस्सों को भी रखा जाएगा। संदीप ने बताया कि ईस्टर्न मेट्रोपॉलिटन बायपास पर 37 हजार वर्ग फुट की जमीन पर यह संग्रहालय बन रहा है। पांच मंजिला इस संग्रहालय के 14 हजार 400 वर्ग फुट का काम पूरा हो चुका है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2021 में ही काम पूरा हो जाना था लेकिन महामारी की वजह से देर हुई है।
संदीप ने बताया कि भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों जैसे कल्पना चावला या दुनिया की अन्य अंतरिक्ष वैज्ञानिक वेलेंटीना टैरेशकोवा, नील आर्मस्ट्रांग, एडविन अल्द्रिन, माइकल कॉलिंस समेत उन तमाम वैज्ञानिकों के हस्ताक्षर ,फोटो, उनसे संबंधित पुराने समाचार पत्रों की कटिंग इस संग्रहालय में संरक्षित की गई है, जिन्होंने चांद पर कदम रखा या अंतरिक्ष के कई हिस्सों का उद्भेदन किया है। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इसके लिए 40 लाख रुपये की वित्तीय मदद दी है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने आठ करोड़ रुपये की वित्तीय मदद दी है जिसमें से 3.5 करोड़ रुपये भवन निर्माण पर खर्च किए जा चुके हैं।
उन्होंने बताया कि इसमें चांद का घर बनाया जा रहा है जो वर्चुअल स्पेस जैसा है। इसमें स्पेस सूट पहनकर लोग जब प्रवेश करेंगे तो उन्हें चांद पर होने जैसा एहसास होगा। इसमें दुनिया भर के 200 से अधिक वैज्ञानिकों की कृतियों को दर्ज किया गया है।
संदीप ने बताया कि 50 दशक बाद 2024 में एक बार फिर नासा चांद पर अपना यान भेज रहा है। इसके अलावा मंगल ग्रह पर नासा का भेजा हुआ रोवर ”पर्सीवरेंस” नजर रख रहा है। लाल ग्रह के पत्थर के टुकड़ों को भी छूने का एहसास इस संग्रहालय में होगा।
अब तक 12 वैज्ञानिक चांद पर जा चुके हैं। इनमें से दो नील आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन थे। बाकी जो 10 वैज्ञानिक हैं वे 1969 से 72 के बीच नासा और पांच अपोलो 12, 14, 15, 16 और 17 मिशन के तहत गए थे। जबकि नील आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन अपोलो 11 से गए थे। इन तमाम वैज्ञानिक तथ्यों की झलक संग्रहालय में मिलेगी। यहां बन रहे संग्रहालय का काम देखने के लिए कुछ दिनों पहले इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष संस्था के प्रोफेसर और भारत सरकार के अंतरिक्ष कमीशन के सदस्य एस किरण कुमार आए थे। उन्होंने कार्य की काफी सराहना की है। कोलकाता में इस अत्याधुनिक अंतरिक्ष संग्रहालय के बनने के बाद बच्चों की स्पेस की दुनिया के बारे में पढ़ने और सीखने की ललक बढ़ेगी।(हि.स.)