– आरके सिन्हा
अब भी देश की 70 की उम्र पार कर गई पीढ़ी को याद है जब भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर, 1962 को शुरू हुआ था। चीन ने 20 अक्टूबर को अचानक भारत की सीमा पर हमला बोला था। हालांकि तब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद चल तो रहा था, पर चीन की एकतरफा कार्रवाई की किसी ने उम्मीद नहीं की थी। देश 1962 से अब तक उस जंग के खलनायकों पर बार-बार चर्चा करता रहा है। पर जरा देखिए कि उस जंग के एक बड़े खलनायक की राजधानी में लगी आदमकद मूर्ति को देखकर हरेक सच्चे भारतवासी का मन उदास हो जाता है। हम बात कर रहे हैं कृष्ण मेनन मार्ग पर लगी वी.के. कृष्ण मेनन की मूर्ति की। वे भारत के पूर्व रक्षा मंत्री थे। क्या इस सड़क का नाम आज के दिन कृष्ण मेनन मार्ग होना चाहिए, जो कि भारत के रक्षा मंत्री रहते हुए भी चीन के एजेंट का ही काम कर रहे थे ?
उस जंग में हमारे सैनिक कड़ाके की ठंड में पर्याप्त गर्म कपड़े पहने बिना ही लड़े थे। उनके पास दुश्मन से लड़ने के लिए आवश्यक शस्त्र भी नहीं थे। इसके लिए कृष्ण मेनन ही जिम्मेदार माने गए थे। पर उनकी मूर्ति स्थापित कर दी गई। मेनन एक घमंडी और जिद्दी किस्म के इंसान थे। जयराम रमेश ने “द मैनी लाइव्स ऑफ वी.के.कृष्ण मेनन” में लिखा है कि मेनन जब 1957 में रक्षा मंत्री बने तो देश में उनकी नियुक्ति का स्वागत हुआ था। उम्मीद बंधी थी कि मेनन और सेना प्रमुख कोडन्डेरा सुबय्या थिमय्या की जोड़ी रक्षा क्षेत्र को मजबूती देगी। पर यह हो न सका। कहते हैं कि मेनन किसी की सुनते ही नहीं थे। लेकिन, मात्र नेहरू का उनके प्रति जरूरत से ज्यादा प्रेम ही उन्हें शक्ति प्रदान करता रहा ।
चीन युद्ध में उन्नीस रहने के आठ साल बाद कृष्ण मेनन के 10 अक्टूबर, 1974 को निधन होने के तुरंत बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके नाम पर एक अति विशिष्ट क्षेत्र की सड़क समर्पित कर दी। चीन ने 1962 के युद्ध में भारत के 37,244 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। या यूं कहें कि कम्युनिस्ट मेनन ने कब्जा करवा दिया था। छह दशकों का लंबा अरसा गुजरने के बाद भी चीन ने हमारे अक्सईचिन पर अपना कब्जा जमाया हुआ है। जितना क्षेत्रफल पूरी कश्मीर घाटी का है, उतना ही बड़ा है अक्सईचिन।
भारत को कूटनीति के रास्ते चीन से अपने कब्जाए हुए क्षेत्र को फिर लेना होगा। चीन से जंग में कमजोर रहने के बाद 14 नवंबर,1963 को संसद में युद्ध के बाद की स्थिति पर चर्चा हुई थी । तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बात रक्षात्मक रूप से रखते हुए कहा- “अपने को विस्तारवादी शक्तियों से लड़ने का दावा करने वाला चीन खुद विस्तारवादी ताकतों के नक्शे कदम पर चलने लगा।” उन्होंने बताया था कि चीन ने किस तरह से भारत की पीठ पर छुरा घोंपा। वे बोलते ही जा रहे थे। तब एचवी कामथ ने कहा- ‘आप बोलते रहिए।’ अब नेहरूजी विस्तार से बताने लगे कि चीन ने भारत पर हमला करने से पहले कितनी तैयारी की हुई थी। तब करनाल से सांसद स्वामी रामेश्वरानंद ने लगभग चीखते हुए कहा- ‘मैं तो यह जानने में उत्सुक हूं कि जब चीन तैयारी कर रहा था, तब आप क्या कर रहे थे?’ ये सुनते ही नेहरू जी नाराज हो गए और कहने लगे- “मुझे लगता है कि स्वामी जी को कुछ समझ नहीं आ रहा।” वास्तविकता यह थी कि जब चीन युद्ध की तैयारी कर रहा था तब नेहरू जी और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई “हिन्दी चीनी भाई-भाई” के नारे लगवा रहे थे। स्कूलों में हमसे भी यह नारा लगवाया जाता था।
नेहरू जी की खराब चीन नीति का ही यह परिणाम रहा कि देश को अपने पड़ोसी से 1962 में युद्ध लड़ने की नौबत आ गई । चाऊ एन लाई को गले लगाने और “हिंदी चीनी भाई-भाई” के नेहरू के उदारवादी नारों को धूर्त चीन ने भारत की कमजोरी समझ ली। पीछे से कम्युनिस्ट कृष्ण मेनन का भीतरघात तो सहायक था ही।
इसके ठीक विपरीत लोकसभा में विगत 15 सितंबर, 2020 को भारत-चीन के बीच चल रहे तनावपूर्ण संबंधों पर चर्चा के तेवर 14 अप्रैल, 1962 को भारत-चीन युद्ध के बाद हुई बहस से पूरी तरह से अलग थे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी तनाव पर चीन को साफ शब्दों में सन्देश दे दिया था कि भारत किसी भी स्थिति के लिए पूरी तरह से तैयार है। अगर ड्रैगन सीमा पर कोई हरकत करेगा तो हमारे जवान उसे माकूल जवाब भी देंगे। सेना के लिए विशेष अस्त्र-शस्त्र और गोला बारूद की पर्याप्त व्यवस्था कर दी गई है।
अब यह जगजाहिर हो ही चुका है कि चीन एलएसी पर यथास्थिति बदलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। चीन ने हाल ही में भारत को अपना शत्रु भी कहा। लेकिन हमारे बहादुर जवान ड्रैगन की नाकाप हरकतों को सफल नहीं होने देते। शौर्य के स्तर पर हमारे सैनिक 1962 में भी चीन पर भारी ही पड़ रहे थे।
यह सच है कि उस युद्ध में विपरीत हालातों में लड़ते हुए भारत के वीर योद्धाओं ने चीन के गले में अंगूठा डाल दिया था। उनमें शूरवीरों में राजधानी से सटे झज्जर के रहने वाले ब्रिगेडियर होशियार सिंह भी थे। आपको साउथ दिल्ली के लक्ष्मीबाई नगर में ब्रिगेडियर होशियार सिंह मार्ग मिलता है। उनका पूरा नाम होशियार सिंह राठी था। उन्होंने 1962 की जंग में अपनी जान का नजराना दिया था भारत माता के लिए। वे सेला ब्रिज पर चीन की सेना के साथ हुई जंग में भारतीय सेना की टुकड़ी की अगुवाई कर रहे थे। कड़ाके की ठंड में गर्म कपड़े न होने और युद्ध के लिए आवश्यक शस्त्रों के अभाव को उन्होंने आड़े आने नहीं दिया था। उनके कुशल नेतृत्व और शौर्य के चलते हमने चीन को तगड़ा नुकसान पहुंचाया था।
यह जानकारी भी संभवत: देश की नौजवान पीढ़ी को नहीं होगी कि जिस समय भारत-चीन के बीच जंग छिड़ी हुई थी तब अटल बिहारी वाजपेयी ने चाइना की एंबेसी पर दर्जनों भेड़ों के साथ प्रदर्शन किया था। दरअसल तब चीन ने भारत पर एक आरोप लगाया था कि उसने सिक्किम की सीमा से 800 भेड़ें चुरा ली है। चीन ने भारत से उन भेड़ों को वापस करने की मांग की थी। चीन की इस मांग के जवाब में अटल जी ने भारतीय जनसंघ के प्रदर्शन की अगुवाई की थी। वे तब के लोकसभा के सदस्य थे और अपने ओजस्वी भाषणों के चलते देशभर में अपनी पहचान बना चुके थे।
बहरहाल, अब भारत को किसी भी स्तर पर चीन से दबना नहीं होगा। सारी दुनिया भी धूर्त चीन को कायदे से समझने लगी है। चीन ने तब से हमारे बहुत बड़े हिस्से पर कब्जा किया हुआ है। भारत को अपने उस हिस्से को किसी भी सूरत में वापस लेना होगा।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)