Monday, April 14"खबर जो असर करे"

परवीन बाबी ने रात दो बजे दिया था ‘क्रांति’ फिल्म में यह सीन

मुंबई। बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर-फिल्ममेकर मनोज कुमार के निधन की खबर सुनकर हाल ही सिनेमा जगत में शोक की लहर थी। तमाम एक्टर्स और फिल्ममेकर्स ने उनसे जुड़े किस्से साझा करके उन्हें याद किया। मनोज कुमार के भाई, प्रोड्यूसर मनीष गोस्वामी ने भी एक इंटरव्यू में पुरानी यादों का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे मनोज कुमार ने जिंदगी में कभी किसी चीज के लिए समझौता नहीं किया। तब भी जब उन्हें किसी सीन को परफ्केट बनाने के लिए 50 से ज्यादा रीटेक करने पड़े। मनीष फिल्म ‘क्रांति’ की शूटिंग का किस्सा सुना रहे थे जो साल 1981 में रिलीज हुई थी।

रात के 2 बजे जाकर 66 टेक में हुआ यह सीन
मनीष गोस्वामी ने बताया, “बात क्रांति की शूटिंग के दौरान की है, हम उस वक्त के जोधपुर पैलेस में शूटिंग कर रहे थे। एक सीन था जिसमें परवीन बाबी को अपना हाथ दीवार से ऊपर उठाकर कहना था, ‘क्रांति जिंदाबाद’। लेकिन किसी वजह से वो उस सीन को वैसा नहीं कर पा रही थीं जैसा चाहिए था। हमने 66 रीटेक किए, और रात के 2 बजे जाकर एक शॉट हुआ जिसे ‘ओके’ कर दिया गया।” मनीष ने बताया कि इतनी मुश्किल और इतने देर तक लगातार रीटेक होने के बावजूद एक भी ऐसा पल नहीं था जब मनोज कुमार ने अपना आपा खोया हो।
माथे पर रूमाल बांधा तो होता था यह मतलब
मनीष गोस्वामी ने बताया, “वो पूरे वक्त बहुत शांत थे, लेकिन बहुत गहराई से चीजें समझा रहे थे। उन्होंने कभी गुस्सा नहीं किया।” मनीष ने बताया कि जब मनोज कुमार अपने माथे पर रूमाल बांधते थे तो सब समझ जाते थे कि अब वो थोड़ा तनाव में हैं। मनीष ने बातचीत के दौरान पुरानी यादों से धूल हटाते हुए कहा, “जब वो माथे पर रूमाल बांधते, तब मतलब होता था कि यूनिट में किसी को भी पैकअप के बारे में नहीं पूछना है। जाहिर है कि ज्यादातर वक्त चीजें प्लान के मुताबिक होती थीं, लेकिन जब नहीं होती थीं तो साफ होता था कि किसी भी सूरत में हमें शूटिंग खत्म करनी है।”

शिफ्ट में लेट पहुंचने पर मिलती थी यह सजा
मनीष ने बताया कि अगर आप सुबह 9 बजे की शिफ्ट पर टाइम से आ रहे हैं तो आप बच जाते थे क्योंकि आप टाइम एग्रीमेंट का पालन कर रहे होते थे। लेकिन अगर आप 9 बजे की शिफ्ट है और 12 बजे पहुंचे हैं, तो आपको वापस जाने की इजाजत तब होती थी जब उन्हें लगता था कि अब भेज देना चाहिए। मनीष ने बताया कि जो भी उनके साथ काम करता था वो कुछ वक्त में मनोज कुमार का काम करने का तरीका समझ जाता था। लेकिन लोग उनके साथ काम करना चाहते थे। आखिर आप किसी ऐसे इंसान को ना क्यों कहेंगे जिसने क्रांति, मकान और उपकार जैसी फिल्में बनाई थीं।