दरअसल, अभी तक संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक संघीय संसद के चुनाव में कुल मतदान के न्यूनतम तीन प्रतिशत और प्रदेश के चुनाव में डेढ़ प्रतिशत मत लाने वाले पार्टियों को ही राजनीतिक दल की मान्यता मिलती है। ऐसे दल को ही सिर्फ समानुपातिक वोट के आधार पर सीटें आवंटित की जाती हैं। अब निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव में संघीय चुनाव में तीन प्रतिशत को बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है और प्रदेश के चुनाव में डेढ़ प्रतिशत को बढ़ाकर तीन प्रतिशत किया गया है। यानी अगर यह कानून परिवर्तन हो जाता है तो नेपाल में दो या तीन दल ही बचेंगे, जिनको मान्यता मिलेगी।
पूर्व प्रमुख निर्वाचन आयुक्त अयोधि प्रसाद यादव का तर्क है कि यदि इस कानून में संशोधन हो जाता है तो सिर्फ बड़ी दो पार्टियां ही देश में रह जाएंगीं और देश के पिछड़े वर्ग सीमांतकृत वर्गों की आवाज संसद तक नहीं पहुंच पाएगी।
सर्वोच्च अदालत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश सुशीला कार्की का भी मानना है कि देश में दो सबसे बड़ी पार्टी मिल कर सत्ता चला रही हैं और अपने विरोधी दलों का अस्तित्व ही समाप्त करने के लिए बहुदलीय व्यवस्था को अंत करने पर तुली हुई हैं। (हि.स.)