
वर्तमान में छीताखुदरी एवं दरगढ़ बांध के नहर तंत्र से कमांड क्षेत्र में पाईप टेस्टिंग का कार्य किया जा रहा है, जिससे इतनी भीषण गर्मी में नालों में प्रवाहित जलधारा इस सूखाग्रस्त क्षेत्र में बहुत सुखद अनुभूति दे रहा है। जिसका कुछ हिस्सा जगह-जगह देख सकते हैं और यही जलधारा क्षेत्र के लोगों व जीव-जंतुओं की प्यास बुझाने के साथ-साथ किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। गंगा कछार की प्रमुख सहायक सोन नदी की शाखा छोटी महानदी पर निर्मित इस छीताखुदरी बांध की कुल क्षमता 7000 करोड लीटर है, जिसमें से 920 करोड लीटर पानी जल जीवन मिशन की छीताखुदरी ग्रामीण पेयजल समूह योजना के लिए आरक्षित रहेगा। इस सिंचाई परियोजना से कुंडम क्षेत्र के 62 ग्रामों के लगभग 16875 हेक्टेयर में होज पद्धति से माइक्रो सिंचाई किया जाना है। छीताखुदरी योजना की विशेषता यह है, कि इसमें गंगा कछार (छोटी महानदी) का पानी नर्मदा कछार में लाया जाकर सिंचाई किया जा रहा है और आवश्यकतानुरूप हिरन नदी के उद्गम स्थल कुंडेश्वर धाम मंदिर के समीप निर्मित स्टॉप डैम को भी फीड किया जा चुका है। इस प्रकार यह योजना पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नदी जोडो परियोजना के अनुरूप ही मूर्त रूप ले रही है, जिसके लिए 4.08 मेगावाट पॉवर की विद्युत लाईन का कार्य पूर्ण हो चुका है। साथ ही, नर्मदा कछार की हिरन नदी में बन रहे बदुआ बांध (क्षमता 3400 करोड लीटर) पूर्णता की ओर है, जिससे बघराजी-सिलौंडी क्षेत्र में 9300 हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी जिस हेतु 0.66 मेगावाट पॉवर की विद्युत लाईन बिछाने का कार्य प्रगति पर है। वहीं दरगढ बांध में 1200 करोड लीटर जल आरक्षित किया जाकर 2600 हेक्टेयर क्षेत्र में जबलपुर के 14 गांव तथा मंडला के 02 गावों को होज पद्धति से माइक्रो सिंचाइ हेतु पानी मिल रहा है। दरगढ़ बांध स्थल चयन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस बांध निर्माण से संपूर्ण कमांड क्षेत्र में ग्रेविटी प्रेशर से ही (बिना किसी बाह्य ऊर्जा के) पानी मिल रहा है जिससे ऊर्जा की बचत हो रही है। लगभग एक हेक्टेयर के अंतर में जगह-जगह पर आऊट्लेट वॉल्व लगाये गये हैं, जिनका नियंत्रण प्रत्येक 30 हेक्टेयर चक पर खेतो में स्थापित किये गये ओएमएस बॉक्स-डिस्ट्रीब्यूशन चेंबर से किया जाना है। श्रमशील किसान इन डिस्ट्रीब्यूटर चेंबर से पानी लेकर गर्मी में मूंग व सब्जी की फसल ले रहे हैं। पहले इस क्षेत्र में ज्यादातर श्रीअन्न ही उगाया जाता था और किसान सिर्फ वर्षा पर निर्भर रहते थे। लेकिन इन बांधों ने क्षेत्र की जीवन दिशा बदल दी है क्योंकि अब वहां के किसान श्रीअन्न के साथ-साथ धान, गेहूं व दलहनी फसल भी उगाने के लिये जागरूक हो गये हैं। कुछ किसानो ने बांध के पानी से बांस का बगीचा भी तैयार किये हैं। इन बांधो के कारण क्षेत्र में धीरे-धीरे रोजगार के अवसर बन रहे हैं जिससे पलायन पर भी निश्चित रूप से रोक लगेगी।
अधीक्षण यंत्री जल संसाधन श्री संकल्प श्रीवास्तव एवं उनकी टीम ने कुंडम ब्लॉक के सूखाग्रस्त क्षेत्र में उक्त बांधो के माध्यम से सहजता से पानी सुनिश्चितता करने का सार्थक प्रयास किया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इन ओएमएस बॉक्स से छेड-छाड किये जाने से टेस्टिंग कार्य में विलम्ब हो रहा है, अतः पाईप नहर तंत्र को सुरक्षित रखे जाने की अपील भी जल संसाधन विभाग द्वारा लगातार की जा रही है। बांध निर्माण एवं माइक्रो सिंचाई सुविधा के उपयोग से निकट भविष्य में भू-जल के दोहन में कमी आयेगी। जिससे जल स्तर बढ्ने के साथ-साथ ग्रीष्म काल में निस्तार के लिए पर्याप्त पानी भी उपल्ब्ध रहेगा। क्षेत्र में आवारा मवेशियों के कारण अधिकांश किसान पानी रहते हुए भी अपने खेतों में वांछित फसल नहीं लगा पाते हैं, क्योंकि दिनभर खेत की रखवाली में उनकी दैनिक मजदूरी भी जाती है। यदि क्षेत्र के लोगों में पशु प्रबंधन समुचित रूप से किया जाये तो पशु व खेती से दोगुना मुनाफा होगा।