Saturday, April 26"खबर जो असर करे"

अब पहलगाम आतंकी हमले की ‘टाइमिंग’ से उठ रहे कई सवाल?

आखिर पहलगाम आतंकी हमले की ‘टाइमिंग’ पर गौर कीजिए। सीधा सवाल है कि जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार (22 अप्रैल, 2025) को ही सऊदी अरब के जेद्दाह पहुँचे थे, जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। उस दिन उनके एयरक्राफ्ट को एस्कॉर्ट करने के लिए सऊदी अरब ने अपने जेट्स भेजे, जो अपने-आप में पीएम मोदी के प्रति खाड़ी मुल्क़ों के सम्मान को दिखाता है। वहीं जेद्दाह का एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें एक शेख ‘राजी’ (2018) फिल्म का गाना ‘ऐ वतन, वतन मेरे आबाद रहे तू’ गाना गाते हुए दिखा। तब तमाम मुस्लिम शख्स भी पीएम मोदी के सामने इसे गुनगुनाते हुए दिखे।
लेकिन तभी अचानक से, ऐसी चौंकाऊ खबर! पहलगाम आतंकी हमला, 26 पर्यटकों की मौत, से मोदी हिल गए। क्योंकि चीनी पिल्ले पाकिस्तान की शह पर हुई एक और नापाक हरकत थी यह| वैसे तो जब भारत सरकार पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगलादेश में हुए तख्तापलट और फिर हिन्दुओं के उत्पीडन पर तत्काल सैन्य कार्रवाई करने के बजाय जब खामोश हो गई, तो यह तभी तय हो गया था कि भारत सरकार ने अपनी कमजोरी जाहिर कर दी है और अब फिर से कश्मीर भी सुलगेगा| ऐसा इसलिए कि हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन से डरते हैं, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगलादेश के खिलाफ सीधी कार्रवाई से बचते हैं और पाकिस्तान को दो टूक सबक सिखाने से भयभीत रहते हैं! लिहाजा पाकिस्तान-पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगलादेश के सैन्य व राजनीतिक हुक्मरानों का मन बढ़ना ही था। पाकिस्तानी जनरल मुनीर के बयान और बंगलादेशी यूसुफ के मिजाज से भी इस बात की तस्दीक होती है। लेकिन भारत द्वारा स्पष्ट पलटवार करने की जगह कूटनीतिक हमले यानी विधवा विलाप!
सवाल यह भी है कि अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जे डी वेंस जब जयपुर के दौरे पर थे, जहाँ वो पत्नी और बच्चों समेत आमेर के किले में घूमे, वहीं 1 दिन पहले ही उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बेहद ही सौहार्दपूर्ण माहौल में बैठक हुई थी। तब इस घटना को जानबूझकर अंजाम दिया गया| वहीं याद कीजिए, फरवरी 2020 के अंत में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जब दिल्ली आए थे, तब दिल्ली में रणनीतिक पूर्वक दंगा किया गया था। तब शाहीन बाग़ सज़ा हुआ था पड़ोसी मुल्क़ों के पीड़ित हिन्दुओं को नागरिकता देने वाले क़ानून सीएए के विरुद्ध। इसलिए अब अमेरिकी उप-राष्ट्रपति के दौरे के दौरान ये सब होना स्पष्ट करता है कि चीनी शह पर पाकिस्तान यह सबकुछ करता रहता है ताकि अमेरिका, भारत के करीब आने से भयभीत हो। कहने का तात्पर्य यह कि भीतर के दंगाइयों और कश्मीर के आतंकियों की विचारधारा को अलग-अलग करके मत देखिए, क्योंकि इनके भीतर भी गहरा कनेक्शन है।
सवाल है कि जब केंद्रीय मंत्री अमित शाह का पूरा ध्यान मार्च 2026 तक देश को नक्सल-मुक्त करने पर है, छत्तीसगढ़ के सुकमा और बीजापुर में हाल ही में 33 नक्सलियों के आत्म-समर्पण की ख़बर आई, जिनपर कुल 50 लाख रुपए का इनाम था। ऐसे सरेंडर लगातार हो रहे हैं। इसप्रकार हमने इन नक्सलियों का उत्पात देखा है, और फिर इनका बचाव करने वाले फादर स्टेन स्वामी, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव और गौतम नवलखा जैसों को समाज के भीतर से इन्हें समर्थन देते हुए देखा है। अब जब ये सब जेल गए, तभी नक्सलियों की कमर टूटी। इससे बौखलाए चीन ने अपने पिल्ले पाकिस्तान से यह नई हरकत करवा डाली| यह हमें समझना होगा और उसकी इस टुच्ची सोच के खिलाफ व्यापक प्रतिरक्षात्मक रणनीति बनानी होगी।|
आपने यह भी देखा होगा कि कुछ ही दिनों पहले जमीन पर जमीन हड़पते जा रहे भारत के वक़्फ़ बोर्ड में सुधार के लिए जब वक़्फ़ क़ानून बना संसद से पास होकर, तो इसके विरोध के नाम पर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाने वाले हरगोविंद दास और उनके बेटे चंदन को घर में घुसकर काट डाला गया। वहां पर मुस्लिम भीड़ के उत्पात के कारण लगभग 400 हिन्दुओं को मालदा पलायन करना पड़ा। लेकिन कहीं से इस्लामी कट्टरपंथ के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं निकला। न गद्दार विपक्ष की ओर से, न समझदार कोर्ट की ओर से! क्योंकि ये तथाकथित भारतीय रंगरूप वाले ‘विदेशी’ लोग धर्मनिरपेक्षता की भांग पीकर मस्त रहते हैं और अपनों को जहाँ तहां मरते हुए देखने के लिए अभिशप्त रहते हैं|
अब जरा एक और बात गौर कीजिये। एक ओर राहुल गाँधी अमेरिका में जाकर भारत के चुनाव आयोग पर हमला कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यहाँ पर पाकिस्तानी आतंकवादी पर्यटकों पर गोलियां बरसा रहे हैं। खास बात ये है कि निशाना बनाए गए पर्यटकों में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे ग़ैर-हिन्दीभाषी राज्यों के भी लोग हैं| इससे साफ है कि पूरे देश में कश्मीरी आतंक का एक सख्त सन्देश भेजा गया है, जिसका प्रति उत्तर भारत सरकार द्वारा दिया जाना अभी बाकी है। सिर्फ कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक से काम नहीं चलेगा, यह मोदी-शाह को पता है, क्योंकि शोक संतप्त भारतीय उनसे बड़ी कार्रवाई चाह रहे हैं ताकि रोज रोज के इस झंझट पर पूर्ण विराम लगे। यह मुश्किल भी नहीं है मजबूत इरादे होने पर।
इस हमले के पीछे एक बड़ा कारण ये भी है कि जम्मू कश्मीर से लद्दाख को अलग किए जाने और शांतिपूर्ण विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनने के कारण आतंकी बेचैन थे। क्योंकि अब घाटी में पर्यटन फल-फूल रहा था। 2024 में लगभग 35 लाख, 2023 में 27 लाख और 2022 में 26 लाख पर्यटक कश्मीर घाटी पहुँचे थे (आँकड़े जम्मू को हटाकर)। इनमें हजारों की संख्या में विदेशी पर्यटक भी शामिल थे। जैसा कि हमें पता है, भारत ने 2023 में जी-20 अध्यक्षता की और इस दौरान देशभर में तमाम बैठकें हुईं। जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में मई 2023 में जी-20 की टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठकें हुईं। कश्मीर के उत्पाद विदेशी प्रतिनिधिमंडल को दिखाए गए, कलाकारों से उन्हें मिलवाया गया। श्रीनगर में तमाम स्थलों पर विदेशी प्रतिनिधिमंडल घूमा भी। ऐसे दृश्य आतंकियों को और उनके आकाओं को लगाकर असहज कर रहे थे।
ऐसे में सुलगता हुआ सवाल है कि आखिर हिन्दू कहाँ-कहाँ से पलायन करेंगे? सन् 711 में हिन्दुकुश से लेकर 2025 में मुर्शिदाबाद तक पलायन ही तो कर रहे हैं जो उनकी नियति बन चुकी है। इसलिए अब देखते हैं कि हम कहाँ तक सिमटते हैं, और कहाँ-कहाँ से भागते हैं। यह समस्या का समाधान नहीं है| हाँ, आरएसएस और भाजपा की बदली हुई फितरत हर हिन्दू को चिंतित करती है| इसलिए चेत जाओ, अन्यथा पछताओगे| क्योंकि देश-विदेश के नेता घड़ियाली आंसू ही बहायेंगे! कट्टरपंथी लोगों के बीच शांति और सुरक्षा की गारंटी देना अब इनके बस की बात भी नहीं रही|
कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक