नई दिल्ली। चुनावी बांड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती दिए जाने के मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में देश के दो बड़े वकीलों के बीच असामान्य तर्क-वितर्क देखने को मिले। बात पॉलिटिकली संबद्धताओं तक जा पहुंची। जहां एक सीनियर वकील ने कह दिया कि मैं कांग्रेस पार्टी का कोई सदस्य नहीं हूं. वकील ने दूसरे लॉयर से कहा कि अगर आप सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो जरूरी नहीं कि आप भाजपा के सदस्य हों।
दरअसल, गुरुवार को मामले की सुनवाई में उस समय अप्रत्याशित मोड़ आ गया, जब सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल अपनी राजनीतिक संबद्धताओं के बारे में संक्षिप्त बातचीत करने लगे।
सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम को लेकर सुनवाई चल रही रही थी कि मामला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की बहस में उलझ गया। कानूनी से सियासी होती बहस के मुख्य किरदार सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रहे। नौबत यहां तक आ गई कि सिब्बल को साफ करना पड़ा कि वह अब कांग्रेस के साथ नहीं जुड़े हैं।
बहस ने ऐसे बदला रुख
सुनवाई के दौरान मेहता की ओर से एक काल्पनिक तस्वीर पेश गई। उन्होंने इसके जरिए कहा कि मान लीजिए कि एक व्यक्ति जो कांग्रेस को चंदा दे रहा है, वह नहीं चाहेगा की भाजपा को इसके बारे में नहीं पता चले। उन्होंने अपनी बात कहते-कहते कोर्ट में ही मौजूद सीनियर एडवोकेट सिब्बल के नाम का भी जिक्र कर दिया।
उन्होंने कहा, ‘अगर सिब्बल इस बात से सहज हो, तो उदाहरण की सराहना कीजिए। मान लीजिए कि एक ठेकेदार के तौर पर मैंने कांग्रेस पार्टी में डोनेशन दिया। मैं नहीं चाहता कि इसके बारे में भाजपा को पता चले, क्योंकि हो सकता है कि वह आने वाले दिनों में सरकार बना ले।’
यह सुनते ही सिब्बल तुरंत उठे और एसजी के सामने साफ किया कि वह अब कांग्रेस से नहीं जुड़े हैं। उन्होंने जवाब दिया, ‘मेरे काबिल दोस्त शायद यह भूल रहे हैं कि मैं अब कांग्रेस पार्टी का सदस्य नहीं हूं।’ इसपर मेहता ने बताया कि सिब्बल पहले भी कोर्ट की कार्यवाही के दौरान मध्य प्रदेश के एक कांग्रेस नेता का पक्ष रख चुके हैं।
इसपर सिब्बल ने जवाब दिया कि अब जब यहां मेहता सरकार का पक्ष रख रहे हैं, तो यह जरूरी तो नहीं कि वह भाजपा के सदस्य हों। यहां मेहता ने भी जवाब दिया कि ‘बिल्कुल नहीं।’ सिब्बल बोले, ‘हां, तो मैं भी नहीं हूं।’
दरअसल, इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम के तहत डोनर बगैर पहचान उजागर किए राजनीतिक दल को चंदा दे सकते हैं। उन्हें इसके लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी SBI से बियरर बॉन्ड्स खरीदने होते हैं। फिलहाल, इस मामले में शीर्ष न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग यानी ECI को चंदे का ब्योरा देने के लिए भी कहा है।