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भोपाल गैस त्रासदी : 38 साल बाद भी कचरा नहीं हटा सकी सरकार

भोपाल । भोपाल गैस त्रासदी को 38 वर्ष हो गए हैं। शुक्रवार को कई संगठनों ने श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर मोमबत्ती जलाकर नमन किया । विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी माने जाने वाले यूनियन कार्बाइड गैस कांड के गुनाहगारों को सजा मिलने का इंतजार है। जिसकी वजह से यहां यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ और हजारों लोग मौत के मुंह में चले गए, हालांकि त्रासदी के समय मरने वालों की संख्या सरकार ने महज 2 हजार 259 बताई थी, लेकिन इस घटना में 15 हजार से अधिक लोग काल के गाल में समा गए थे, जबकि 5 लाख से अधिक लोग गैस से प्रभावित हुए हैं, इसके बाद भी कार्बाइड परिसर में पड़े हजारों टन कचरे को आज तक नष्ट नहीं किया जा सका है।

जानकारी के लिए बता दें कि वर्ष 1984 में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर की वो काली रात जो यूनियन कार्बाइड कारखाने की गैस रिसाव से हजारों की मौत हो गई थी, जबकि हजारों प्रभावित व्यक्ति आज भी उसके दुष्प्रभाव झेलने को मजबूर हैं।

बता दें कि तत्कालीन शिवराज सरकार ने कई साल पहले यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े लगभग 350 मी टन कचरे का निपटान गुजरात के अंकलेश्वर में करने का निर्णय लिया गया था और उस समय गुजरात सरकार भी इसके लिए तैयार हो गई थी, लेकिन गुजरात की जनता द्वारा इसको लेकर आंदोलन किए जाने के बाद गुजरात सरकार ने कचरा वहां लाए जाने से इनकार कर दिया। गुजरात के इनकार के बाद सरकार ने मध्य प्रदेश के धार जिले के पीथमपुर में कचरा नष्ट करने का निर्णय लिया और 40 मी. टन कचरा वहां जला भी दिया था, लेकिन यह मामला प्रकाश में आने के बाद यहां विरोध में किए गए आंदोलन के बाद स्वयं मध्यप्रदेश सरकार ने इससे अपने हाथ खींच लिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नागपुर में डीआरडीओ स्थित इंसीनिरेटर में कचरे को नष्ट करने के आदेश दिया, लेकिन महाराष्ट्र के प्रदूषण निवारण मंडल ने इसकी अनुमति नहीं दी और महाराष्ट्र सरकार ने भी नागपुर में कचरा जलाने से इनकार कर दिया।

प्रदेश सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली और न्यायालय ने नागपुर स्थित इंसीनिरेटर के निरीक्षण के आदेश दिए, लेकिन न्यायालय को यह बताया गया कि वहां स्थित इंसीनिरेटर इतनी बड़ी मात्रा में जहरीला कचरा नष्ट करने में सक्षम नहीं है। सरकार ने महाराष्ट्र के कजोला में भी कचरा नष्ट करने पर विचार किया गया, लेकिन प्रदूषण निवारण मंडल के अनुमति नहीं दिये जाने से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। जिससे आज तक परिसर में पड़ा हजारों टन कचरा जहां था वहीं आज भी पड़ा है।

क्या कहते हैं संगठन

गैस पीडि़तों की लड़ाई लड़ रहे संगठनों का कहना है कि दुनिया की सबसे बड़ी गैस त्रासदी का असर आज भी दिख रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के अधीन संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन एनवायरमेंटल हेलट ने एक शोध में यह पाया था कि जहरीली गैस का दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं पर भी पड़ा। इसके कारण बच्चों में जन्मजात बीमारियां हो रही हैं। उन्हेंने आरोप लगाते हुए कहा कि आइसीएमआर की रिपोर्ट सरकार ने प्रकाशित ही नहीं होने दी, बल्कि रिपोर्ट को दबा लिया गया।

ब्रिटेन की संसद में भी गूंजा भोपाल गैस कांड

भोपाल गैस कांड की 38वीं बरसी की गूंज ब्रिटेन की संसद में भी सुनाई दी। गैस कांड को लेकर ब्रिटेन सांसद में अर्ली डे मोशन (ईडीएम) पेश किया गया। इस ईडीएम का मतलब है भोपाल गैस कांड से जुड़ी समस्याओं को लेकर तत्काल चर्चा की जाए। इस बात से सहमत होकर ब्रिटेन संसद में ही 5 राजनीतिक दलों के साथ तीन स्वतंत्र सदस्य समेत कुल 40 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं। ब्रिटेन संसद में यूनियन कार्बाइड के मालिक डाउ केमिकल से तत्काल सुधार करने के लिए कहा गया।

भोपाल की वो काली रात

-भोपाल गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है।

-तीन दिसंबर, 1984 की आधी रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली जहरीली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली थीं।

-यूनियन कार्बाइड में हुए रिसाव के बाद वातावरण में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस घुल गई।

-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे।

– गैस त्रासदी में लगभग 15000 से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत।

– गैस त्रासदी में लाखों की संख्या में लोगों को अपंग होना।

कैसे हुआ हादसा

-यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था।

-इसकी वजह थी टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना।

-इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया और गैस रिसने लगी

-लोगों को मौत की नींद सुलाने में विषैली गैस को औसतन तीन मिनट लगे।

पर्यावरण पर असर

-यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के कारण आस-पास का भूजल मानक स्तर से 562 गुना ज्यादा प्रदूषित हो गया।

-कारखाने में और उसके चारों तरफ तकरीबन 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक कचरा जमीन में आज भी दबा हुआ है।

-बीते कई सालों से बरसात के पानी के साथ घुलकर अब तक 15 बस्तियों की 50 हजार से ज्यादा की आबादी के भूजल को जहरीला बना चुका है।

-सीएसई के शोध में परिसर से तीन किलोमीटर दूर और 30 मीटर गहराई तक जहरीले रसायन पाए गए।

यूनियन कार्बाइड कारखाने में बनता था कीटनाशक

यूनियन कार्बाइड कारखाने में कारबारील, एल्डिकार्ब और सेबिडॉल जैसे खतरनाक कीटनाशकों का उत्पादन होता था। संयंत्र में पारे और क्त्रसेमियम जैसी दीर्घस्थायी और जहरीली धातुएं भी इस्तेमाल होती थीं।

सरकार का कृषि विभाग उन कीटनाशकों का एक बड़ा खरीददार था। भोपाल कारखाने से कीटनाशकों का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता था और उससे भारत को निर्यात शुल्क की मोटी आय होती थी।

यहां तक कि जानकारों का कहना है कि कीटनाशकों की आड़ में यह कारखाना कुछ ऐसे प्रतिबंधित घातक एवं खतरनाक उत्पाद भी तैयार करता था, जिन्हें बनाने की अनुमति अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में नहीं थी, लेकिन यहां खतरनाक उत्पाद तैयार किया जाता था। (हि.स.)