Saturday, November 23"खबर जो असर करे"

भोपाल गैस कांड का आज भी तीसरी पीढ़ी भी भुगत रही दंश

भोपाल । मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) में वर्ष 1984 में हुए गैस कांड (Gas scandal) का दंश वर्तमान समय में तीसरी पीढ़ी (Third generation) भी भुगत रही है। 2-3 दिसंबर की रात यूनियन कार्बाइड के कारखाने से रिसी गैस का कुप्रभाव इतना अधिक था कि अब भी भोपाल की जेपी नगर व आसपास की करीब 48 बस्तियों में बच्चे कमजोर व बीमार पैदा होते हैं। इनमें कई ऐसे हैं जो सुन नहीं पाते, अपने ही सहारे चल-फिर नहीं सकते। कई बच्चे ऐसे भी हैं जो सुनते हैं, लेकिन समझते नहीं, जबकि कुछ मानसिक रूप से कमजोर हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो जन्म के बाद से बिस्तर पर हैं।

ज्ञात हो कि भोपाल गैस कांड में यूनियन कार्बाइड कारखाने (अब मालिक कंपनी डॉव केमिकल्स) से जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) रिसी थी। उस हादसे में हजारों लोगों की मौत हुई थी और लाखों प्रभावित हुए थे। इस गैस कांड के पीड़ि‍त पन्नालाल यादव कहते हैं, दुनिया के लिए भोपाल गैस कांड भले ही 36 साल पुराना हो गया है, लेकिन मेरे घर में त्रासदी का दर्द आज भी जिंदा है। मेरे पोते कमजोर पैदा हुए और उन्हें कई तरह की दिक्कतें हैं। दुख और आक्रोश की यह कहानी अकेले पन्नालाल की नहीं है, बल्कि जेपी नगर के आसपास की बस्तियों में सैकड़ों बच्चे पीढ़ी-दर-पीढ़ी कमजोर व बीमार पैदा हो रहे हैं।

यादव बताते हैं कि ‘मेरा बेटा संजय गैस कांड के बाद बीमार हो गया था। उसके दो बेटे यानी मेरे दो पोते हैं, जो जन्म से ही दिव्यांग हैं। बड़ा पोता विकास (20 वर्ष) व अमन (19 वर्ष) के हैं। शुरू में गैस राहत अस्पताल में लेकर गए थे, जहां डॉक्टरों ने बताया था कि गैस के प्रभाव के कारण दोनों कमजोर हैं। उपचार कराने से कोई फायदा नहीं है। अब तो हमने थक-हारकर उनका उपचार कराना भी छोड़ दिया है।

इसी तरह से जाहिर उल हसन बताते हैं, मेरा बेटा राशिद गैस से प्रभावित हुआ था। उसके बाद मेरा 12 साल का पोता अशअर शुरू से ही कमजोर है। सामान्य बच्चों के मुकाबले काफी कम जानता-समझता है। हम इलाज करवा रहे हैं, मगर पोता ठीक नहीं हुआ है। गैस कांड के कारण आज भी हमारी बस्ती के कई लोगों की तबीयत ठीक नहीं रहती है। इसी प्रकार से हजारों की संख्‍या में लोग आज गैस के दंश को झेलने के लिए मजबूर हैं।

वहीं, बताते चलें कि भोपाल में इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) का शोध संस्थान नेशनल इंवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) की मुख्य शोधकर्ता डॉ. रूमा गलगलेकर के नेतृत्व में वर्ष 2016 में गैस पीडि़तों के बच्चों के (तीसरी पीढ़ी) पर शोध किया गया था। हालांकि उसे बाद में बंद कर दिया गया। बाद में गैस पीड़ि‍त संगठनों ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल की तो पता चला कि 1048 गैस पीड़ि‍त महिलाओं के बच्चों में 9 प्रतिशत तक विकृतियां पाई गईं ।

इसी तरह 1247 सामान्य महिलाओं के बच्चों में विकृति की दर 1.3 फीसद थी। उस समय इस अध्ययन की रिपोर्ट को तीन बैठकों में मान्यता मिली थी, लेकिन बाद में अध्ययन को त्रुटिपूर्ण बताकर खारिज कर दिया गया था। भोपाल ग्रुप फॉर इंफार्मेशन एंड एक्शन की सदस्‍ययों का कहना है कि बीते 36 सालों में भी बड़े-बड़े संस्थान गैस से दूसरी व तीसरी पीढ़ी में हो रहे नुकसान को उजागर करने से बच रहे हैं, जो कि गैस पीडि़तों का दुर्भाग्य है। नीरी ने बीच में शोध बंद करके इसे साबित किया है।
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Bhopal disaster: भोपाल गैस कांड : 39 साल बाद भी आंखों में आंसू
भोपाल । मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) में वर्ष 1984 में हुए गैस कांड (Gas scandal) का दंश वर्तमान समय में तीसरी पीढ़ी (Third generation) भी भुगत रही है।
विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी माने जाने वाले यूनियन कार्बाइड गैस कांड को 39 साल बीत गए हैं, इसके बाद भी हजारों पीडि़त अब भी उन गुनाहगारों को सजा मिलने के इंतजार में हैं जिनकी वजह से यहां यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ और हजारों लोग मौत के मुंह में चले गए, लेकिन कार्बाइड परिसर में पड़े कचरे को आज तक नष्ट नहीं किया जा सका है और निकट भविष्य में इसके निपटान की कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है।
वर्ष 1984 में मप्र की राजधानी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात्रि में यूनियन कार्बाइड कारखाने की गैस के रिसाव से हजारों की मौत हो गई थी, जबकि हजारों प्रभावित व्यक्ति आज भी उसके दुष्प्रभाव झेलने को मजबूर हैं। उस त्रासदी की वजह से सबसे ज्यादा पीड़ा शायद महिलाओं को ही उठानी पड़ी थी। महिलाओं को अपने पिता, पति और पुत्र के रूप में सैकड़ों लोगों को खोना ही पड़ा, लेकिन अनेक महिलाओं को हमेशा के लिए मातृत्व सुख से भी वंचित रहना पड़ा।

शिवराज सरकार द्वारा कुछ साल पहले यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े लगभग 350 मी टन कचरे का निपटान गुजरात के अंकलेश्वर में करने का निर्णय लिया गया था और उस समय गुजरात सरकार भी इसके लिए तैयार हो गई थी, लेकिन गुजरात की जनता द्वारा इसको लेकर आंदोलन किए जाने के बाद गुजरात सरकार ने कचरा वहां लाए जाने से इनकार कर दिया। वहीं गुजरात सरकार द्वारा कचरा नष्ट करने से इनकार करने के बाद सरकार ने मध्य प्रदेश के धार जिले के पीथमपुर में कचरा नष्ट करने का निर्णय लिया और 40 मी. टन कचरा वहां जला भी दिया था, लेकिन यह मामला प्रकाश में आने के बाद यहां विरोध में किए गए आंदोलन के बाद स्वयं मध्यप्रदेश सरकार ने इससे अपने हाथ खींच लिए।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नागपुर में डीआरडीओ स्थित इंसीनिरेटर में कचरे को नष्ट करने के आदेश दिया, लेकिन महाराष्ट्र के प्रदूषण निवारण मंडल ने इसकी अनुमति नहीं दी और महाराष्ट्र सरकार ने भी नागपुर में कचरा जलाने सेइनकार कर दिया।
प्रदेश सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली और न्यायालय नेनागपुर स्थित इंसीनिरेटर के निरीक्षण के आदेश दिए, लेकिन न्यायालय को यह बताया गया कि वहां स्थित इंसीनिरेटर इतनी बड़ी मात्रा में जहरीला कचरा नष्ट करने में सक्षम नहीं है। सरकार द्वारा महाराष्ट्र के कजोला में भी कचरा नष्ट करने पर विचार किया गया, लेकिन प्रदूषण निवारण मंडल द्वारा अनुमति नहीं दिये जाने से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। जिससे आज तक परिसर में पड़ा हजारों टन कचरा जहां था वहीं आज भी पड़ा है।

इस कचरे के होने से जहां भूमिगत प्रदूषण फैल रहा तो वहीं कई प्रकार की बीमारियां भी बनी रहती हैं, हालांकि सरकार द्वारा गैस पीडितों के लिए पानी एवं आवास की व्‍यवस्‍था की गई है, लेकिन पीडि़त लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा उन्‍हें नाम मात्र सुविधा दी गई है। गैस पीडि़तों की लड़ाई लड़ रहीं रचना डींगरा का कहना है कि गैस पीडितों को मिला पैसा अधिकारी और नेता दीपक की तरह चट कर गए हैं। इन 35 सालों में कई सरकारें आई, लेकिन गैस पीडि़तों को आज तक ठीक तरह से न्‍याय नहीं दिला पाईं।
उल्लेखनीय है कि दो तीन दिसंबर 1984 की रात हुई इस त्रासदी में हजारों
लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि लाखों लोग आज भी गैस त्रासदी का दंशझेल रहे हैं।

क्‍या कहते हैं संगठन
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन के सदस्‍यों का कहना है कि दुनिया की सबसे बड़ी गैस त्रासदी का असर आज भी दिख रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के अधीन संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन एनवायरमेंटल हेलट ने एक शोध में यह पाया था कि जहरीली गैस का दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं पर भी पड़ा। इसके कारण बच्चों में जन्मजात बीमारियां हो रही हैं। उन्‍हेंने आरोप लगाते हूए कहा कि आइसीएमआर की रिपोर्ट सरकार ने प्रकाशित ही नहीं होने दी, बल्कि रिपोर्ट को दबा लिया गया। जहरीली गैस का दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं पर भी पड़ा। इसके कारण बच्चों में जन्मजात बीमारियां हो रही हैं।
आईसीएमआर की रिपोर्ट सरकार ने प्रकाशित ही नहीं होने दी। रिपोर्ट को दबा लिया गया।

भोपाल की वो काली रात
-भोपाल गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है।
-तीन दिसंबर, 1984 की आधी रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली
जहरीली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली थीं।
-यूनियन कार्बाइड में हुए रिसाव के बाद वातावरण में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस घुल गई।
-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे।
– गैस त्रासदी में लगभग 15000 से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत।
– गैस त्रासदी में लाखों की संख्या में लोगों को अपंग होना।

कैसे हुआ हादसा
-यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था।
-इसकी वजह थी टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना।
-इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और
टैंक खुल गया और गैस रिसने लगी
-लोगों को मौत की नींद सुलाने में विषैली गैस को औसतन तीन मिनट लगे।

पर्यावरण पर असर
-यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के कारण आस-पास का भूजल मानक स्तर से 562 गुना ज्यादा प्रदूषित हो गया।
-कारखाने में और उसके चारों तरफ तकरीबन 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक कचरा जमीन में आज भी दबा हुआ है।
-बीते कई सालों से बरसात के पानी के साथ घुलकर अब तक 14 बस्तियों की 50 हजार से ज्‍यादा की आबादी के भूजल को जहरीला बना चुका है।
-सीएसई के शोध में परिसर से तीन किलोमीटर दूर और 30 मीटर गहराई तक जहरीले रसायन पाए गए।

क्या बनता था इस कारखाने में
यूनियन कार्बाइड कारखाने में कारबारील, एल्डिकार्ब और सेबिडॉल जैसे खतरनाक कीटनाशकों का उत्पादन होता था। संयंत्र में पारे और क्त्रसेमियम जैसी दीर्घस्थायी और जहरीली धातुएं भी इस्तेमाल होती थीं।
सरकार का कृषि विभाग उन कीटनाशकों का एक बड़ा खरीददार था। भोपाल कारखाने से कीटनाशकों का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता था और उससे भारत को निर्यात शुल्क की आय होती थी।
जानकारों का कहना है कि कीटनाशकों की आड़ में यह कारखाना कुछ ऐसे प्रतिबंधित घातक एवं खतरनाक उत्पाद भी तैयार करता था, जिन्हें बनाने की अनुमति अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में नहीं थी।