Thursday, November 21"खबर जो असर करे"

प. बंगाल के केंजाकुड़ा गांव में बनाई जाती है विशालकाय जलेबी

Zalebi
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बांकुड़ा। पश्चिम बंगाल में बांकुड़ा जिले के केंजाकुड़ा गांव में सबसे बड़ी जलेबी बनाने की परंपरा है। भाद्र महीने के विश्वकर्मा और भादू पूजा के अवसर पर, कांसा-पीतल और बुनाई कुटीर उद्योगों से समृद्ध बांकुड़ा का यह औद्योगिक गांव विशालकाय जलेबी या जंबो जलेबी बनाने में व्यस्त हो जाता है। मिठाई की दुकानों में बड़ी जलेबी कौन बना सकता है और इस विशाल जलेबी को किसने खरीदा, इसकी एक अघोषित और मैत्रीपूर्ण प्रतियोगिता होने लगती है।

सदियों पुरानी यह प्रथा आज भी कायम है। सामान्यतः जलेबी का अर्थ ढाई पेंच होता है। केंजाकुड़ा जलेबी आकार में काफी बड़ी और गोल होती है। विश्वकर्मा पूजा के मौके पर बांकुड़ा के इस जलेबी को खाने और देखने के लिए भीड़ लग जाती है। यहां की यह जलेबी पूरे राज्य में और यहां तक कि अन्य राज्यों में भी पहुंचती है। इन दिनों बांकुड़ा जिले के केंजाकुड़ा गांव की गलियों में हलवाई दुकानदारों को इस जलेबी को तलने में व्यस्त देखा जा सकता है।

विश्वकर्मा और भादु पूजा के दौरान केंजाकुड़ा गांव जलेबी गांव बन जाता है। द्वारकेश्वर नदी के तट पर बांकुड़ा ब्लॉक नंबर-1 में यह केंजाकुड़ा गांव मिट्टी के बर्तन और बुनाई सहित विभिन्न कुटीर उद्योगों के लिए प्रसिद्ध है। विश्वकर्मा और भादु पूजा के अवसर पर इस विशाल जलेबी को खरीदकर रिश्तेदारों और परिचितों के घर भेजने की इस गांव की परम्परा है। प्रत्येक वर्ष भाद्र मास की 27 तारीख से आश्विन मास की पांच तारीख तक यह विशाल जलेबी बनाने की धूम मची रहती है।

विश्वकर्मा पूजा के दिन इस जलेबी को खरीदने के लिए दुकानों में ग्राहकों की लाइन लग जाती है। यहां के हलवाई निताई दत्ता ने बताया कि यह जलेबी विदेशों में भी पहुंच चुकी है। यह यहां की पारंपरिक प्रथा है। यह देखने के लिए एक अलिखित प्रतियोगिता है कि कौन सबसे बड़ी जलेबी बना सकता है। हालांकि, कभी डेढ़ से दो फीट व्यास की जलेबी बनाई जाती थी लेकिन आजकल यह एक फीट या उससे भी अधिक हो गई है।

निताई बाबू बताते हैं कि बदलते तकनीकी युग में अब बड़े कड़ाही, ओवन, ग्रेट सहित बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है। साथ ही कुशल या दक्ष कारीगरों की भी कमी है। यहां के हलवाइयों का दावा है कि यह विशाल जलेबी यहां के अलावा पूरे भारत में और कहीं भी नहीं बनाई जाती है और न ही दुनिया के किसी भी अन्य देश में। इसलिए यहां के व्यापारियों ने जीआई टैग की मान्यता देने की मांग की है। (हि.स.)